- बच्चेदानी के मुख का कैंसर क्या है?
- क्या आप खतरे में है ?
- गर्भाशय ग्रीवा कैंसर की रोकथाम
- चिकित्सक से कब सलाह लें?
- शुरुआती पहचान के लिए जांच
- निदान कैसे संभव हैं?
- स्टेज
- कैंसर का इलाज
- संदर्भ
बच्चेदानी का मुख क्या है?
बच्चेदानी का मुख गर्भाशय ग्रीवा के रूप में भी जाना जाता है, जो गर्भ के निचले हिस्से में होता है। बच्चेदानी का मुख योनि को गर्भाशय से जोड़ता है। गर्भाशय ग्रीवा के दो मुख्य हिस्से हैः अंतगर्भाशय ग्रीवा (एंडोसर्विक्स) और बहिर्जरायुग्रीवा (एक्टोसर्विक्स) बच्चेदानी का मुख लगभग 2-3 से.मी. है
आँकड़े
भारतवर्ष में बच्चेदानी के मुख के कैंसर से होने वाली मौतें अन्य देशों की तुलना में अधिक है।
बच्चेदानी के मुख के कैंसर के नए मरीज: 96,322 और करीब 60,078 महिलाओ की इस बीमारी के कारन मृत्यु हो जाती हैं [1]
यह आंकड़े शहरों की तुलना में गावों में ज्यादा है।[2]
- बच्चेदानी के मुख में ह्यूमन पैपीलोमा वायरस (एच.पी.वी.) का लम्बे समय तक संक्रमण
- एक से अधिक स्त्री/पुरुष के साथ यौन संबंध रखना
- कम उम्र में यौन सम्बन्ध की शुरुआत
- धूम्रपान
- बार-बार गर्भधारण करना
- एच.आई.वी./एड्स/अंग प्रत्यारोपण,व ऐसी दवाये जो शरीर की रोग से लड़ने की क्षमता को कम करती हैं|
- इनमें से एक या अधिक के होने से जरुरी नहीं है की आपको बच्चेदानी के मुख का कैंसर होगा| किन्तु यदि आपमें इनमें से एक या अधिक जोखिम करक हैं तो अपने डॉक्टर से परामर्श करें|
गर्भाशय ग्रीवा कैंसर की रोकथाम
(I) प्राथमिक रोकथाम: प्राथमिक रोकथाम द्वारा बीमारी को होने से पहले ही रोका जा सकता है।
- सुरक्षित यौन संबंध रखें (एक से अधिक यौन संबंध न रखें)
- कंडोम का प्रयोग एच.पी.वी. संक्रमण के खतरे को कम करता है।
- गुप्त अंगो के रोगो का समय पर उपचार।
- ऐसे प्रमाण मिले है की पुरूष का खतना यौन साथी में संक्रमण के खतरे को कम करता है।
- एच.पी.वी. का टीकाकरण [4]: बच्चेदानी के मुख के कैंसर के लिये जिम्मेदार एच.पी.वी. वायरस 16 एवं 18 के लिये रोगनिरोधी टीकाकरण उपलब्ध है| एच.पी.वी. टीकाकरण सभी प्रकार के एच.पी.वी. वायरस के लिये असरकारक नहीं है। इससमय दो टीके बाजार में उपलब्ध है। यह टीकाकरण 9 से 14 वर्ष की आयु में होना चाहिए | जो महिलायें एच.पी.वी संक्रमण के संपर्क में न आई हो उनहें इस टीकाकरण से ज्यादा लाभ होने की संभावना हैं।
भारतीय बाल चिकित्सा अकादमी (आई.ए.पी.) द्वारा एचपीवी टीकाकरण पर की गई टिप्पणी के अनुसार:
- 9-14 वर्ष आयु वर्ग की कन्या के लिये एचपीवी टीके की 2 खुराक 6 महीने के अंतराल के बाद|
- 15 वर्ष या अधिक आयु की लड़कियों, एच आई वी/एड्स, कीमोथेरपी या अंग प्रत्यारोपित महिलाओ के लिये 3 खुराक (०,1, या 2 और 6 महीने बाद) की सिफारिश है|
ध्यान दें:- बच्चेदानी के मुख का कैंसर के कैंसर के खिलाफ यह टीका पूरी सुरक्षा की गारंटी नहीं देता इसलिए कैंसर जांच परीक्षण भी आवश्यक है|
टीकाकरण से मिलने वाली सुरक्षा|
यह टीका अवधि अभी स्पष्ट नहीं है एच.पी.वी. टीके की लंबी अवधि तक सुरक्षा देने की योग्यता की जांच के लिए शोध चल रहा है।
टीकाकरण बच्चेदानी के मुख का कैंसर के कैंसर के परीक्षण का विकल्प नहीं है। भारत में एच.पी.वी. टीकाकरण पर अभी तक कोई सरकारी दिशानिर्देश नहीं है।
(II) माध्यमिक रोकथाम: माध्यमिक रोकथाम से बीमारी को जांच द्वारा पूर्व अवस्था में ही पता लगाया जा सकता है, और उसे आगे बढ़ने से रोका जा सकता है।
यह जांच स्वस्थ्य महिलाओं में की जाती है ताकि बच्चेदानी के मुख का कैंसर में होने वाले कैंसर-पूर्व परिवर्तन का पता लगाया जा सके तथा भविष्य में कैंसर के विकास को रोका जा सके। बच्चेदानी के मुख का कैंसर के कैंसर के लिये उपलब्ध स्क्रीनिंग परिक्षणें में पैप स्मीयर, विजुअल इन्सपेक्शन विद एसिटिकएसिड (वी.आई.ए), विजुअल इन्सपेक्शन विद ल्यूगोल्स आयोडीन (वी.आई.एल.ई) और एच.पी.वी.
टेस्ट शामिल है।
चिकित्सक से कब सलाह लें?
अत्याधिक मासिक धर्म का होना, मासिक धर्म होने के पश्चात् धब्बा या खून जाना और मासिक धर्म के पश्चात् (रजोनिवृति) महीना होना।
संभोग के बाद खून आना
संभोग के दौरान दर्द होना
पेट के निचले हिस्से या श्रोणि में दर्द
असामान्य या अत्याधिक योनी स्त्राव
इनमें से किसी भी संकेत या लक्षण का मतलब यह नहीं है कि आपको निश्चित रूप से कैंसर है, परन्तु यदि इनमें से कोई भी लक्षण हो तो आपको किसी कुशल चिकित्सक से परामर्श करना चाहिये।
क्या शुरुआती जांच के लिए परीक्षण हैं?
स्क्रीनिंग टेस्ट
पैप स्मीयर एक सरल टेस्ट है जो बच्चेदानी के मुख से कुछ कोशिकाओं (सेल्स )को इकट्ठा करके किया जाता है | इससे बच्चेदानी के मुख के कैंसर और कैंसर से पहले होने वाले विकारों का पता लगाने में मदद मिलती है | यह टेस्ट निचले प्रजनन अंगों के इन्फेक्शन को पता लगाने में भी सहायता करता है ।
पैप टेस्ट किसे करवाना चाहिए?
अंतर्राष्ट्रीय नियमों के अनुसार, 21 वर्ष से अधिक आयु की महिलाएं पैप टेस्ट करवा सकती हैं।
यदि आपकी आयु 30 वर्ष या उससे से अधिक है तो पैप टेस्ट हर 3 वर्ष में एक बार किया जाना चाहिए जबतक की आप 65 वर्ष की न हो जाएं | यदि यह टेस्ट एचपीवी टेस्ट के साथ संयुक्त है, तो परीक्षण को हर 5 साल में करवाया जा सकता है।
जिन महिलाओं को नियमित रूप से पैप टेस्ट की आवश्यकता नहीं होती है
महिलायें जिनकी आयु 21 वर्ष से कम और 65 वर्ष से अधिक है|
जिन महिलाओं ने कैंसर के आलावा किसी और बीमारी के कारण गर्भ निकलवा लिया है |
पैप टेस्ट के लिए सही समय क्या है?
यदि पैप टेस्ट मासिक धर्म के पहले दिन से 10 से 20 दिनों के बीच किया जाता है तो इष्टतम परिणाम देता है। परीक्षण के समय महिला को मासिक धर्म नहीं होना चाहिए।
पैप स्मीयर की तैयारी
पैप टेस्ट से पहले आपको 48 घंटे के लिए निम्नलिखित से बचना चाहिए:
संभोग
योनि की सफाई
योनि में दवाओं का प्रयोग
योनि में गर्भ निरोधकों जैसे क्रीम / जेली का प्रयोग
प्रक्रिया : बच्चेदानी के को अंदर से देखने के लिए के लिए स्पेकुलम नामक एक उपकरण का इस्तेमाल किया जाता है जो योनि में धीरे से प्रवेश करता है है। इस प्रक्रिया के दौरान कुछ असुविधा या ऐंठन हो सकती है, लेकिन यह आमतौर पर दर्दनाक नहीं है।
एक छोटी सी लकड़ी का बना हुआ उपकरण या स्पैटुला का उपयोग कोशिकाओं को लेने के लिए बच्चेदानी के मुख के निचले हिस्से की सतह को धीरे से रगड़ने के लिए किया जाता है।
बच्चेदानी के मुख के भीतरी भाग से कोशिकाएँ प्राप्त करने के लिए एक विशेष ब्रश, जिसे साइटोब्रश कहा जाता है, का उपयोग किया जाता है।
कोशिकाओं को एक ग्लास स्लाइड पर रखा जाता है, तुरंत इथेनॉल से स्लाइड सेट की जाती है और आगे की प्रक्रिया और रिपोर्ट के लिए प्रयोगशाला (लैब )में भेजा जाता है।
पैपटेस्ट के परिणाम
एक पैप टेस्ट परिणाम सामान्य (नार्मल) या असामान्य (अबनॉर्मल ) रूप में रिपोर्ट किया जा सकता है।
a) सामान्य ( नार्मल ) पैप टेस्ट
यदि टेस्ट रिपोर्ट सामान्य है, तो इसका मतलब है कि ली गई स्मियर में कोई असामान्य या कैंसर कोशिकाएं नहीं मिली हैं।
b) असामान्य ( अबनॉर्मल )पैप टेस्ट
असामान्य पैप टेस्ट के परिणाम का मतलब यह नहीं है कि महिला को कैंसर है। यदि पैप टेस्ट के परिणाम स्पष्ट नहीं होते हैं या बच्चेदानी के मुख की कोशिकाओं में हल्की असामान्यता दिखाते हैं, तो आपका डॉक्टर 6 सप्ताह या 6 महीने में या एक वर्ष में पैप टेस्ट को दोहरा सकता है, या और कोई टेस्ट भी करवा सकता है। असामान्य कोशिकाओं जो अपने आप नहीं ठीक हो जाती है ,इनका इलाज करने से बच्चेदानी के मुख कैंसर के लगभग सभी मामलों को रोका जा सकता है । इस असामान्यता का उपचार अक्सर एक आउट-रोगी विभाग (ओपीडी) में किया जाता है। यदि परीक्षण परिणाम कोशिकाओं में अधिक गंभीर असामान्यता मिलती है तब निम्नलिखित नैदानिक प्रक्रियाओं द्वारा इसकी पुष्टि की जाती है:
कोल्पोस्कोपी: एक प्रक्रिया जिसमें एक कोलपोस्कोप ( रौशनी के साथ आकार बड़ा करके दिखने वाला उपकरण) का उपयोग करके योनि और बच्चेदानी के असामान्य क्षेत्रों की जांच की जाती है।
बायोप्सी (टुकड़े की जांच ): ऊतक (टिश्यू ) का एक नमूना बच्चेदानी के मुख से काटा जाता है और कैंसर के लक्षणों की जांच के लिए एक रोगविज्ञानी द्वारा माइक्रोस्कोप के नीचे देखा जाता है। एक बायोप्सी जो केवल ऊतक की थोड़ी मात्रा (पंच बायोप्सी) को हटाती है, आमतौर पर ओपीडी में होती है।
एसिटिक एसिड (VIA) द्वारा दृश्य निरीक्षण (गर्भ के निचले हिस्से का ): 5% एसिटिक एसिड (VIA) को बच्चेदानी के मुख पर लगा कर नंगी आँखों द्वारा जांच करना एक ऐसा सरल टेस्ट है जिससे बच्चेदानी के मुख के शुरुवाती घावों और शुरुवाती कैंसर का जल्द पता लगाया जा सकता है । VIA के परिणाम तुरंत उपलब्ध होते हैं |
निदान कैसे संभव हैं?
यदि आपकी उपरोक्त जाँचों से कोई भी जाँच (पैप जांच, वी.आई.ए और एच.पी.वी.) पॉजिटिव पाई जाती है तो कुछ अन्य उन्नत टेस्ट करवाना ज़रूरी होता है, ताकि यह पता चल सके कि कहीं यह कैंसर तो नहीं है| इसके लिए दूरबीन द्वारा जाँच और टुकड़े की जांच किये जाते है, जिससे यह पता लगाया जा सके कि कैंसर है या नहीं।
दूरबीन की जांच (काल्पोस्कोपी): इस विधि द्वारा दूरबीन द्वारा योनिमार्ग और बच्चेदानी के मुख में होने वाले परिवर्तन का पता लगाया जाता है।
टुकड़े की जांच (बायोप्सी): यदि पानी की जांच (पैप स्मीयर) में कोई लक्षण पाए जाते हैं, तो आपका चित्कित्सक टुकड़े की जांच करवा सकते हैं| इस जाँच में बच्चेदानी के मुख से छोटा सा टुकड़ा लेकर प्रयोगशाला में परिक्षण किया जाता है ताकि कैंसर का पता चल सके|। यह एक सरल विधि है जिसे बाह्य रोगी विभाग (ओ.पी.डी.) में ही कर सकते है और इसके बाद महिला घर जा सकती है। यदि चिकित्यक बड़े टुकड़े की जांच (कोन बायोप्सी) की आवश्यकता समझता है तो उस स्थिति में महिला को कुछ समय के लिए अस्पताल में भर्ती होकर जांच करानी पड़ती है।
स्टेज [9]
बीमारी किस हद तक फ़ैल चुकी है इसका पता लगाने की प्रकिया को स्टेजिंग (अवस्था) कहा जाता है।
स्टेज 0 या कैंसर-इन-सिटु: इस अवस्था में बच्चेदानी के मुख की अंदरूनी सतह में असामान्य कोशिकाएं पाई जाती है जिन्हें आंखों द्वारा नहीं देखा जा सकता। इस अवस्था में कैंसर बच्चेदानी के मुख तक ही सीमित होता है।
पहली अवस्था: इस अवस्था में कैंसर बच्चेदानी के मुंह तक ही सीमित रहता हैं।
दूसरी अवस्था: इस अवस्था में कैंसर बच्चेदानी के मुंह से आगे पहुंच जाता है पर श्रोणि दीवार तक या योनि के निचले तिहाई हिस्से तक नहीं पहुंचता।
तीसरी अवस्था: इस अवस्था में कैंसर योनि के निचले तिहाई हिस्से या श्रोणि दीवार तक पहुंच जाता है, जो गुर्दे को भी प्रभाविक कर सकता है।
चौथी अवस्था: इस अवस्था में कैंसर मूत्राशय एवं मलाशय अथवा शरीर के अन्य भागों तक फैल जाता है।
कैंसर का इलाज
बच्चेदानी के मुख के कैंसर के लिये तीन तरह की उपचार पद्धति हैः सर्जरी (शल्यचिकित्सा), रेडियोथेरेपी (बिजली की सिकाई) और कीमोथेरेपी (दवाइयों द्वारा)। इन पद्धतियों को अकेले या एक दूसरे के संयोजन में दिया जा सकता है। कैंसर का उपचार, उसकी स्टेज, प्रकार और महिला की स्वास्थ्य स्थिति पर निर्भर करता है।
पूर्व कैंसर अवस्था में उपचार: इसमें कैंसरयुक्त कोशिकाओं को हटाया जाता है।
क्रायोसर्जरी: इस प्रक्रिया में बच्चेदानी के मुख पर ठंडी सिकाई द्वारा असामान्य उत्तकों को नष्ट किया जाता है, इस विधि में करीब 5 मिन [9]
लीप: इस विधि द्वारा प्रभावित हिस्से में कैंसरयुक्त कोशिकाओं को बिजली के पतले तार (लो वोल्टेज) द्वारा हटा दिया जाता है।
लेजर शल्यचिकित्सा: इसमें लेजर प्रक्रिया द्वारा असामान्य कोशिकाओं को जला दिया जाता है।
कोनाइजेशन: इस विधि द्वारा कोन के आकार का टुकड़ा निकाल कर कैसर युक्त कोशिकाओं को हटा दिया जाता है। यह प्रक्रिया महिला को बेहोश करके अस्पताल के शल्यकक्ष (आपरेशन थियेटर) में सम्पन्न की जाती है।
हिस्ट्रैक्टमी (गर्भाशय विच्छेदन/बच्चेदानी को निकालना) जिन महिलाओं में कैंसर प्रभावित उत्तकों को कोनाइजेशन द्वारा नहीं निकाला जा सकता और जिन्हें भविष्य में गर्भधारण नहीं करना उन महिलाओं में यह शल्यचिकित्सा की जाती है।
चरण 1
इस प्रकार के कैंसर के पहले चरण का इलाज में शल्य-चिकित्सा, कीमोथेरेपी, और/ या बिजली की सिकाई
का प्रयोग होता है, मरीज की इच्छा और आयु और चिकित्सक की इच्छा पर निर्भर करता है|
गर्भाशय का अंडकोष के साथ या बिना निकालना
गिल्टियों को निकालना
बिजली की सिकाई
बिजली की सिकाई और कीमोथेरेपी
अन्दर और बाहर बिजली की सिकाई
चरण 2
बिमारी के इस चरण में इनमें से किसी प्रकार से इलाज किया जाता है|
गर्भाशय के साथ गिल्टियों को निकालना और बिजली की सिकाई देना|
गर्भाशय के साथ गिल्टियों को निकालना
बिजली की सिकाई और कीमोथेरेपी
अन्दर और बाहर बिजली की सिकाई और कीमोथेरेपी
चरण 3
बिमारी के इस चरण में गर्भाशय के अन्दर और बाहर बिजली की सिकाई और कीमोथेरेपी दी
जाती है|
चरण 4
जीवन की गुणवत्ता बढाने और बिमारी के लक्षणों को कम करने के लिए बिजली की सिकाई देना
(बिजली की सिकाई बिमारी के भार को कम करती है)
कीमोथेरेपी और अन्य दवाओं द्वारा बिमारी के भार को कम करना ताकि जीवन की गुणवत्ता बढ़
सके|
संदर्भ
[1] Ferlay J, Soerjomataram I, Ervik M, et al. (2013) GLOBOCAN 2012 v1.0, Cancer Incidence and Mortality Worldwide: IARC Cancer Base No. 11.Lyon, France: http://globocan.iarc.fr. Accessed on 04 Sep 2014
[2] Kurkure AP, and Yeole BB. Social inequalities in cancer with special reference to South Asian countries. Asian Pac J Cancer Prev 2006;7:36-40
[3] Bosch FX, de Sanjosé S. Chapter 1: Human Papillomavirus and Cervical Cancer–Burden and Assessment of Causality. J Natl Cancer Inst Monogr 2003;31:3-13
[4] Vashishtha VM, Choudhury P, Kalra A, et al. Indian Academy of Pediatrics (IAP) recommended immunization schedule for children aged 0 through 18 years–India, 2014 and updates on immunization. Indian Pediatr. 2014 Oct; 51(10):785-800.
[5] Miller AB, Chamberlain J, Day NE, et al. Report on a workshop of the UICC project on evaluation of screening for cancer. Int J Cancer 1990;46:761-9
[6] Moyer VA; U.S. Preventive Services Task Force. Screening for cervical cancer: U.S. Preventive Services Task Force recommendation statement. Ann Intern Med 2012;156:880-91
[7] Sankaranarayanan R, Nene BM, Shastri SS, et al. HPV Screening for Cervical Cancer in Rural India. N Engl J Med 2009;360:1385-94
[8] Sankaranarayanan R, Budukh AM and Rajkumar R. Effective screening programmes for cervical cancer in low- and middle-income developing countries. Bull World Health Organ 2001;79:954-62
[9] Shepherd JH. Cervical and vulva cancer: changes in FIGO definitions of staging. Br J Obstet Gynaecol 1996;103:405-6