- कोलोरेक्टल कैंसर क्या हैं?
- क्या आप खतरे में है ?
- कोलोरेक्टल कैंसर की रोकथाम
- चिकित्सक से कब सलाह लें?
- शुरुआती पहचान के लिए जांच
- निदान कैसे संभव हैं?
- चरण & इलाज
- संदर्भ
कोलोरेक्टल कैंसर क्या है?
कोलोरेक्टल कैंसर कोलन और / या मलाशय का कैंसर है जो कोलन और मलाशय के अस्तर में पॉलिप्स (कैंसर से पहले होने वाले विकार )के विकास के साथ शुरू होता है। इसे कोलन कैंसर या रेक्टल कैंसर भी कहा जा सकता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि कैंसर कहाँ से शुरू होते हैं। कोलन कैंसर और रेक्टल कैंसर को अक्सर एक साथ रखा जाता है क्योंकि उनमें कई विशेषताएं एक जैसी होती हैं।
कोलन और मलाशय क्या हैं?
कोलन और मलाशय बड़ी आंत के हिस्से हैं, जो पाचन तंत्र का सबसे निचला हिस्सा होता है। कोलन लगभग 5 फीट लंबा होता है और मल से पानी को सोखता है।
रेक्टम, कोलन का अंतिम 12 सेंटीमीटर (लगभग 5 इंच) वाला भाग होता है जहां शरीर मल को अस्थायी रूप से रखता है जब तक कि शरीर मॉल का त्याग न कर दे |
आँकड़े
भारत में कोलोरेक्टल कैंसर की घटना पश्चिमी देशों की तुलना में कम है, और यह भारत में सातवाँ अग्रणी कैंसर है।
ग्लोबोकैन, 2018 डेटा
नए मामले: 27,605
मृत्यु: 19,548
रोग के साथ रहने वाले रोगियों की कुल संख्या 53,700 (सभी उम्र के लिए 5 साल का प्रचलन)
मलाशय कैंसर होने की औसत आयु: लगभग 40-45 वर्ष।
जोखिम कारक
जोखिम कारक (जिन्हें संशोधित नही किया जा सकता)
- आयु: उम्र बढ़ने के साथ कैंसर बढ़ने का जोखिम भी बढ़ता जाता है। युवा वर्ग में भी कोलोरेक्टल कैंसर की संभावना हो सकती है, लेकिन 50 से अधिक उम्र के लोगों में यह संभावना अधिक बढ़ जाता है।
- कोलोरेक्टल कैंसर का व्यक्तिगत इतिहास: यदि आपको कुछ प्रकार के पॉलिप (एडीनोमा) हैं तो आपको कोलोरेक्टल कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है। यदि पॉलिप बडे़ हैं या अधिक संख्या में हैं तो यह खतरा वास्तव में अधिक होता है।
यदि आपको कोलोरेक्टल कैंसर हुआ है तो आपको मलाशय या अन्य भाग में कैंसर होने की संभावना बढ़ जाती है चाहे पूर्व स्थान पर हुये कैंसर को पूर्णतः हटा दिया गया हो। यदि कोलोरेक्टल कैंसर युवावस्था में हुआ हो तो यह संभावना और अधिक बढ़ जाती है। - आँतों की जीर्ण सूजन का व्यक्तिगत इतिहास: जो व्यक्ति आँतों की जीर्ण सूजन या अल्सरेटिव कोलाइटिस या क्रोन रोग से ग्रसित हैं उन्हें कोलोरेक्टल कैंसर विकसित होने का खतरा अधिक होता है।
- कोलोरेक्टल कैंसर का पारिवारिक इतिहास: यदि आपके माता-पिता भाई-बहन या अन्य प्रथम स्तर के रिश्तेदार कोलोरेक्टल कैंसर से ग्रस्त थे या हैं तो आपको यह खतरा बढ़ जाता है। यह संभावना और अधिक बढ़ जाती है यदि रिश्तेदार को 45 से कम उम्र में कोलोरेक्टल कैंसर हुआ हो या एक से अधिक प्रथम स्तर के रिश्तेदार इस कैंसर से प्रभावित हों।
- प्रजाति: कोलोरेक्टल कैंसर की सबसे ज्यादा घटनाएॅं अफ्रीकी अमेरिकी पुरूषों और महिलाओं में पाई जाती है।
- वंशानुगत बीमारियाँ:जो कोलोरेक्टल कैंसर के खतरे की बढ़ाते है जैसे फेमिलियल एडीनोमेटस पौलीपोसिस तथा लिचं सिंड्रोम।
जोखिम कारक (जो संशोधित किए जा सकते है)
- मोटापा: अधिक वजन वाले व्यक्तियों को कोलोरेक्टल कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है और उनमें कोलोरेक्टल कैंसर से होने वाली मृत्यु का जोखिम भी बढ़ जाता है।
- धूम्रपान: लंबे समय तक धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों में कोलोरेक्टल कैंसर और उससे होने वाली मृत्यु की संभावना बढ़ जाती है।
- टाइप-2 मधुमेह: मधुमेह और इंसुलिन प्रतिरोध कोलोरेक्टल कैंसर होने का खतरे को बढ़ाते है।
- मद्यपान: अत्याधिक शराब का सेवन कोलोरेक्टल कैंसर के खतरे को बढ़ा देता है।
- अनियमित जीवन शैली: अंसयमित जीवन शैली कोलोरेक्टल कैंसर होने के खतरे को बढ़ा देती है नियमित रूप से शारीरिक गतिविधियों में संलिप्त होकर कैंसर होने के खतरे को कम किया जा सकता है।
- विशिष्ट प्रकार के आहार: लाल एवं संशोधित मॉंस का सेवन कोलोरेक्टल कैंसर के खतरे को बढ़ा देता है।
उच्च तापमान पर मॉंस पकाने से कुछ रसायन पैदा होते है जो कैंसर के खतरे को बढ़ाते है। आहार में फलो सब्जियों तथा साबुत अनाज की अधिकता को कोलोरेक्टल कैंसर के खतरे को कम करने से जोडा गया है। - विकिरण चिकित्सा: पूर्व कैंसर के लिये पेट के क्षेत्र में दी गई विकिरण चिकित्सा कोलोरेक्टल कैंसर के खतरे को बढ़ा सकती है।
कोलोरेक्टल कैंसर को रोकने का कोई निश्चित तरीका नहीं है। लेकिन कुछ ऐसे उपाय/सावधानियाँ हैं जो आपके जोखिम को कम करने में मदद कर सकती हैं, जैसे कि जोखिम वाले कारकों को नियंत्रित करना :
• स्वस्थ वजन श्रेणी में रहना और वजन बढ़ने से बचना।
• आपकी शारीरिक गतिविधि की तीव्रता और मात्रा में वृद्धि।
• लाल और संसाधित मांस को सीमित मात्रा में तथा सब्जियां और फल अधिक मात्रा में खाना
• अधिक शराब से परहेज।
•धूम्रपान छोड़ना।
• उच्च जोखिम वाले व्यक्तियों के लिए नियमित जांच (स्क्रीनिंग) की जा सकती है। यह उन पॉलिप्स का पता लगा सकता है जिन्हें कैंसर में बदलने से पहले ही हटाया जा सकता है।
- पेट को आदतों में परिवर्तन कब्ज, दस्त, मल में बदलाव (पतले एंव पेंसिल आकार के)
- मल में रक्त या गुदा से खून जाना
- पेट में दर्द और तकलीक, गैस, सूजन और ऐंठन
- अत्याधिक कमजोरी और थकान, भूख न लगना, वजन में गिरावट
- पेट के निचले हिस्से में दर्द जो बीमारी बढ़ने के साथ और भी बढ़ जाता हैं
कोलोरेक्टल कैंसर से ग्रस्त अधिकांश मरीजों में प्राथमिक अवस्था में उपरोक्त लक्षण नहीं पाए जाते। जब यह लक्षण दिखते है, ट्यूमर के आकार और स्थान के अनुसार ये लक्षण विभिन्न मरीजों में भिन्न हो सकते है।
स्क्रीनिंग और निदान
कोलोरेक्टल कैंसर की स्क्रीनिंग
नियमित परीक्षण द्वारा कोलोरेक्टल कैंसर होने का जल्द पता लगाया जा सकता है, जब इसके इलाज होने की संभावना अधिक होती है। परीक्षण द्वारा कुछ पॉलिप का भी कैंसर परिवर्तन से पूर्व निदान किया जा सकता है व उन्हें हटाया जा सकता है।
स्क्रीनिंग के लिये निम्नलिखित परीक्षण इस्तेमाल किये जाते है:
- एफ ओबीटी (मल मनोगत रक्त परीक्षण): इस परीक्षण में मल के नमूने मे रक्त की उपस्थिति का पता लगाया जाता है। मल में रक्त बडी आंत के पॉलिप या कैंसर के कारण आ सकता है।
- सिग्मोइडोस्कोपी: (इस विधि में एक लचीली ट्यूब का प्रयोग किया जाता है, जिसमें एक तरफ प्रकाश स्रोत्र होता है। इस ट्यूब को मलाशय में से बडी आंत के निचले हिस्से के पॉलिप या कैंसर देखने के लिए अन्दर डाला जाता है।
- कोलोनोस्कापी: इसमे एक लंबी, लचीली ट्यूब द्वारा समस्त बड़ी आंत का निरीक्षण पॉलिप अथवा ट्यूमर के लिये किया जाता है।
- सी.टी. कोलोनोग्राफी: यह एक विशेष प्रकार का सी.टी.स्कैन है जिसमें बड़ी आंत और मलाशय में होने वाले पॉलिप को देखा जा सकता है।
उच्च जोखिम वाले व्यक्ति, अर्थात जिनके करीबी रिश्तेदार को कोलोरेक्टल कैसर या पॉलिप हो, जिन्हे प्रदाहक या आंत रोग हो या जिन्हें ऐसा वंशागत सिंड्रोम हो जिससे कोलोरेक्टल कैंसर की संभावना बढती हो, स्क्रीनिंग की सलाह दी जाती है। इसके लिए एफ ओ.बी.टी. हर एक या दो साल में, सिग्मोइडोस्कोपी प्रत्येक पांच वर्ष और कोलोनोस्कोपी प्रत्येक दस वर्ष में करवानी चाहिये।
कोलोरेक्टल कैंसर के लक्षण आम तौर पर उन्नत रोग के साथ ही दिखाई देते है। यदि आपके चिकित्सक को परीक्षण के दौरान कुछ संदिग्ध लगता है या आपको कोलोरेक्टल कैंसर के कुछ लक्षण हैं तो आगे परीक्षण कराना आवश्यक है।
इतिहास एवं शारीरिक परीक्षण:
यदि आपको कोलोरेक्टल कैंसर के कुछ संकेत या लक्षण हैं तो चिकित्सक आपके पूर्ण चिकित्सा इतिहास, विशेषतः पारिवारिक इतिहास के बारे में पूछेगा।
सामान्य शारीरिक परीक्षण के दौरान चिकित्सक आपके पेट का परीक्षण बढ़े हुये माँस या अंग के लिये करेगा। चिकित्सक आपकी गुदा मेंं अंगुली द्वारा परीक्षण भी कर सकता है। इस परीक्षण में दस्ताने पहन कर उंगली को मलाशय में डाल कर असामान्य क्षेत्र को महसूस किया जाता है।
रक्त परीक्षण:
- हीमोग्राम कोलोरेक्टल कैंसर के कुछ रोगियों में खून की कमी (एनीमिया) की जाँच के लिये हीमोग्राम परीक्षण किया जाता हैं।
- लिवर एंजाइम की जाँच भी की जा सकती है क्योंकि कोलोरिक्टल कैंसर अक्सर जिगर तक फैल जाता हैं।
- सीरम ट्यूमर मार्कर: कैंसर कोशिकाऐं कुछ पदार्थों का स्राव करती है जिन्हें ट्यूमर मार्कर कहा जाता है। इन मार्करों का परीक्षण कैंसर के निदान के लिये किया जा सकता है। कोलोरेक्टल कैंसर के लिये सबसे आम ट्यूमर मार्कर हैं।
- कार्सिनो एम्ब्रायोनिक एंटीजन (सी.ई.ए.) और सी.ए. 19-9: इन परीक्षणों का प्रयोग अन्य जाँचो के साथ निदान के लिये और कोलोरेक्टल कैंसर के इलाज के बाद रोगियों की निगरानी के लिये किया जाता है।
इन ट्यूमर मार्करों का उन्नत स्तर कुछ सौम्य परिस्थितियों में भी हो सकता है अतः इन्हें कोलोरेक्टल कैंसर की स्क्रीनिंग के लिये इस्तेमाल नहीं किया जाता।
कोलोनोस्कापी:
कोलोरेक्टल कैंसर का निदान करने के लिये सबसे अधिक इस्तेमाल किया जाने वाला परीक्षण ‘कोलोनोस्कापी’ हैं। ’कोलोनोस्कापी’ प्रक्रिया में एक पतली लचीली ट्यूब (नली) का उपयोग किया जाता है, जिससे बड़ी आंत और मलाशय की पूरी लंबाई देखी जा सकती है। इसे गुदा के माध्यम से डाला जाता है इसके एक सिरे पर कैमरा होता है जो चिकित्सक के पास रखे मानीटर से जुड़ा होता है। बड़ी आंत के अंदर पूरी जाँच करने के लिये इस विशेष उपकरण का इस्तेमाल किया जाता है। आंत के अंदर पाए गए किसी संदिग्ध क्षेत्र से पालिप निकालने हेतु या टुकड़े की जाँच के लिये कोलोनोस्कोप द्वारा औजार भी उपयोग किये जा सकते हैं। इस परीक्षण को बाह्य रोगी विभाग में या चिकित्सक के क्लीनिक पर किया जा सकता हैं। परीक्षण से पहले कुछ निर्देशों का पालन करना जरूरी है जैसे एनीमा द्वारा आंत और मलाशय को खाली किया जाता है।
कोलोनोस्कोपी प्रक्रिया के लिये हल्का बेहोश किया जाता है। यह प्रक्रिया हालांकि असुविधाजनक है परन्तु काफी सुरक्षित है। इसमें कभी-कभी पेट का फुलाव, गैस दर्द या ऐंठन हो सकती है। यदि टुकडे की जाँच ली गई है या पालिप हटाया गया है तो परीक्षण के बाद एक दो दिनों तक मल में खून जा सकता है।
बॉयोप्सी/टुकड़े की जाँच:
कोलोनोस्कोपी प्रक्रिया के दौरान किसी भी संदिग्ध क्षेत्र से टुकड़े की जाँच ली जा सकती है। एक विशेष उपकरण का प्रयोग कर ऊतक का एक छोटा सा टुकडा लिया जाता है। इसके बाद नमूने के अग्रिम परीक्षण के लिये पैथोलॉजी (लैब) प्रयोगशाला में भेजा जाता है।
टुकड़े की जाँच के नमूने पर आनुंवाशिक परीक्षण द्वारा विशिष्ट जीन परिवर्तन की पहचान भी की जा सकती है, हालांकि यह परीक्षण देश में कुछ ही केन्द्रों पर उपलब्ध है।
इमेजिंग परीक्षण:
- कम्पयूटेड टोमोग्राफी (सीटी) स्कैन द्वारा कोलोरेक्टल कैंसर का यकृत (ज़िगर) या अन्य अगां में फैलाव का पता लगाया जा सकता है। स्कैन परीक्षण के दौरान यदि आवश्यकता हो तो यकृत से टुकड़े की जाँच भी की जा सकती है।
- अल्ट्रासांउड: एंडोरेक्टल अल्ट्रासांउड एक विशेष ट्रांसडयूसर मलाशय में डाला जाता है। इसके द्वारा कैंसर का मलाशय की दीवार में हुआ फैलाव का पता लगाया जाता है।
- एम.आर.आई. चुंबकीय अनुवाद इमेजिंग की सहायता से कैंसर के स्थानीय प्रसार को देखा जा सकता है जिससे उसके उपचार की उचित योजना बनाई जा सकती है।
- छाती का एक्सरेयह जाँच फेफड़े तक कैंसर के प्रसार को देखने के लिये और शल्यक्रिया से पहले किसी भी सह रूग्ण अवस्था का पता लगाने के लिये की जाती है।
अवस्था 0 या कार्सिनोमा-इन-सिटू: इस अवस्था में असामसन्य कोशिकाएँ बड़ी आँत या मलाशय के म्यूकोसा (आंतरिक अस्तर) में सीमित होती हैं।
अवस्था I: इस अवस्था में कैंसर म्यूकोसा से निकलकर आँत या मलाशय की माँसपेशियों की परत तक फैल जाता है किन्तु आसपास के ऊतकों या लिम्फ नोड्स में नहीं फैला हैं।
अवस्था II: कैंसर आँत या मलाशय की दीवार से बढ़कर उदर के आंतरिक अस्तर, (जिसे विसेरल पेरिटोनियम कहा जाता है) और आसपास के ऊतकों तक फैल जाता है। इस अवस्था में कैंसर लिम्फ नोड्स तक नहीं फैला हैं।
अवस्था III: इस अवस्था में कैंसर आँत की दीवार से बढ़कर लिम्फ नोड्स तक फैल जाता हैं।
अवस्था IV: कैंसर शरीर के अन्य भाग जैसे कि जिगर या फेफड़ों में फैल जाता हैं।
इलाज
कोलोरेक्टल कैंसर के उपचार
कोलोरेक्टल कैंसर के इलाज के विभिन्न तरीके है:
- शल्यचिकित्सा
- विकिरण चिकित्सा
- कीमो-थेरेपी
- लक्षित चिकित्सा
इन चिकित्साओं को अकेले या संयोंजन में, ट्यूमर के आकार एंव उसकी स्थिति के अधार पर दिया जाता हैं।
अवस्था अनुसार कोलोरेक्टल कैंसर का उपचार:
कोलेरेक्टल कैंसर का उपचार उसकी अवस्था पर निर्भर करता हैः
प्रारम्भ अवस्था: इस अवस्था में पॉलिप को निकाल दिया जाता है। पालिपेक्टमी कहते हैं।
यदि पॉलिप पूर्णतः नही निकाला जा सकता है तो अतिरिक्त शल्य चिकित्सा की आवश्यक्ता पड़ती है। यदि ट्यूमर बड़ा होता है और उसे स्थानीय रूप से निकाला जा सकता है तो कभी कभी आंशिक रूप से कोलोन को हटाना पड़ सकता है जिसे आंशिक कोलोक्टमी कहते है।
प्रथम अवस्था: इस अवस्था में शल्यक्रिया द्वारा ट्यूमर और लसीका ग्रंथियों को निकाल दिया जाता हैं।
अांशिक कोलेक्टमी- इस अवस्था में शल्य चिकित्सा द्वारा कोलोन का वह हिस्सा जहाँ कैंसर हुआ है तथा आसपास के लिम्फ नोडस, लसीका ग्रंथिया को हटा दिया जाता है। इसके अतिरिक्त अन्य चिकित्सा आम तौर पर आवश्यक्ता नही पड़ती।
द्वितीय अवस्था:
इस प्रकिया में शल्य चिकित्सा के साथ साथ अतिरिक्त चिकित्सा जैसे कीमोथेरेपी, विकिरण चिकित्सा भी की जाती है।
तृतीय अवस्था:
इस अवस्था में शल्य द्वारा ट्यूमर हटाने के बाद कीमोथेरेपी भी दी जाती है। रेक्टल कैंसर से ग्रस्त मरीजो में कीमोथेरेपी के साथ साथ शल्य चिकित्सा से पहले या बाद में विकिरण का भी प्रयोग किया जाता है।
चर्तुथ अवस्था:
इस अवस्था मे अधिकतर मामलों में शल्य चिकित्सा संभव नही़ होती क्योकि कैंसर से अघिकतर अंग प्रभावित हो चुके होते है। यदि कैंसर कम फैला है तो शल्य प्रकिया अपनाई जा सकती है, यह शल्यचिकित्सक निर्भर करता है।
कोलोरेक्टल कैंसर के उपचार में लक्षित चिकित्सा:
कोलोरेक्टल कैंसर के लिये लक्षित चिकित्सा उन कैंसर कोशिकाओं के जीन्स और प्रोटीन को लक्ष्य बनाती है जो कैंसर के बढने में मदद करते है। लक्षित चिकित्सा द्वारा कैंसर कोशिकाओं को बढ़ने और जीवित रहने से रोका जाता है जबकि स्वस्थ कोशिकाओं को नष्ट होने से बचाया जाता है।
लक्षित चिकित्सा के प्रकार
- एंटी एज्योजेनेसिस थेरेपी:
यह एज्योजेनेसिस नई रक्त वाहिकाओं के बनने की प्रकिया को रोकने का कार्य करती है।
- ई.जी.एफ.आर अवरोधक थेरेपी:
यह दवाऐं ई.जी.एफ.आर. को अवरोध करती है जिससे कोलोरिक्टल कैंसर का बढ़ना कम किया या रोका जा सकता है।
संदर्भ
[1] Three-years report of Population Based Cancer Registries 2006-2008 (Detailed Tabulations of Individual Registries Data). National Cancer Registry Programme (Indian Council of Medical Research), Bangalore November 2010. Available from: http://www.PBCR_2006_2008.aspx, (accessed on December 27, 2012)