पित्ताशय का कैंसर

पित्ताशय क्या है? शरीर रचना और कार्य [1]

पित्ताशय नाशपाती के आकार का एक छोटा सा अंग है जो पेट के दाँयी ओर, जिगर के नीचे, पसलियों के थोड़ा सा पीछे स्थित होता है। यह आमतौर पर 3-4 इंच लंबा और एक इंच चैड़ा होता है। पित्ताशय का मुख्य कार्य पाचन तरल पदार्थ को संग्रहित करना है, जिसे पित्त कहा जाता है। पित्त लिवर (जिगर) में बनता है। पाचन क्रिया के दौरान जब भोजन छोटी आँत के पहले भाग में प्रवेश करता है, पित्ताशय संकुचित होता है और उससे पित्त निकलता है जो छोटी आँत मे जाकर पाचन प्रक्रिया में सहायता करता है। पित्ताशय एक उपयोगी अंग है लेकिन यह आवश्यक अंग नही है। इसके बिना हम जीवित रह सकते है। जिन व्यक्तियों का पित्ताशय शल्य चिकित्सा द्वारा निकाल दिया जाता है, वे बाद में भी सामान्य जीवन व्यतीत कर पाते है।

पित्ताशय का कैंसर  (जी.बी.सी.), पित्ताशय के उत्तकों में होता हैं।[2]

महामारी विज्ञान

  • वर्ष 2015 में वैश्विक स्तर पर पित्ताशय के कैंसर के लगभग 1,78,101 मामले होने का अनुमान है।bsp;[3]
  • जी.बी.सी की कुछ विशेषताएँ जैसे लिंग, जातीय एवं भौगोलिक प्रवृति इसके आनुवांशिक और पर्यावरणीय कारकों का प्रभाव दर्शाते हैं। [4]
  • पित्ताशय के कैंसर से ग्रस्त पुरूषों की तुलना में महिलाओं की संख्या दुगुनी है। [5]
  • जी.बी.सी उच्च व्याप्त क्षेत्रों में खासतौर से महिलाओं में ग्रेस्ट्रोइन्टेसटाइनिल कैंसरो में सबसे प्रमुख है। [6]
  • ग्लोबोकेन 2012 के आँकड़ो के अनुसार यह रोग अफ़्रीकी क्षेत्रों में असामान्य है, (0.7/1,00,000) और पूर्वीय क्षेत्रों में उच्चतर है (3.3/1,00,000)। [6]
  • विकसित देशों में इस कैंसर की घटना दर कम है। [6]
  • चिली में जी.बी.सी की घटना दर महिलाओं एवं पुरूषों में सबसे अधिक है। [6]

जोखिम कारक

पित्ताशय के कैंसर होने के सटीक कारणों की जानकारी नहीं है। परन्तु कई जोखिम कारक है जो पित्ताशय के कैंसर को बढ़ाते हैं।

  • आयु- पित्ताशय का कैंसर बुजूर्ग लोगों में अधिक पाया जाता है। भारत में जी.बी.सी 45 वर्ष की उम्र के बाद ज्यादा देखा जाता है। इसके अधिकतम मामले 65 वर्ष की आयु के उपरान्त देखे जाते हैं। [6]
  • लिंग- पित्ताशय का कैंसर महिलाओं में अधिक पाया जाता है। भारत में पित्ताशय कैंसर के कुल मामलो में से आधे से अधिक महिलाओ में देखने को मिलते है।[6]
  • जातीयता- पित्ताशय के कैंसर के विकसित होने का खतरा अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों एवं जातीय समूहों में विभिन्न होता है।  [9] विश्व स्तर पर पित्ताशय का कैंसर भारत, पाकिस्तान, पूर्वी यूरोप, दक्षिण अमेरिका के देशों में और पूर्वी एशिया में अधिक पाया जाता है और अफ़्रीका में सबसे कम होता है।  [3] भारत में पित्ताशय के कैंसर के विकसित होने का खतरा उत्तर और उत्तर पूर्वी क्षेत्रों में सबसे अधिक है, जबकि दक्षिण भारतीयों में सबसे कम है। [6,7]
  • पित्ताशय की पथरी और पित्ताशय की जीर्ण सूजन- पित्ताशय की पथरी पित्ताशय के कैंसर के लिये सबसे आम जोखिम कारक है।  [10, 11] पित्ताशय की पथरी और पित्ताशय के कैंसर के बीच महत्त्वपूर्ण संबंध है, परन्तु इसके प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं है।  [12] पित्ताशय की पथरी ज्यादातर कोलेस्ट्रोल तथा पित्त में पायें जाने वाले अन्य पदार्थो से बनी होती है। यह पित्ताशय में सूजन पैदा करती है।  [13] पित्ताशय की पथरी के मरीजों में से केवल 1% को ही पित्ताशय का कैंसर होता हैं [14]. पथरी के कारण पित्ताशय में होने वाली लंबे समय तक की सूजन पित्ताशय की दीवार में कैल्शियम का जमाव करती है (पोर्सिलेन पित्ताशय) जो पित्ताशय के कैंसर के खतरे को बढ़ाती है।  [11] करीब 25% पित्ताशय के कैंसरों (12% से 61%) का संबंध अवस्था के साथ देखा गया है। [15] उत्तर भारत में किये गये एक अध्ययन के अनुसार पित्ताशय का कैंसर महिलाओं (5.59%) में पुरुषों (1.99%) की अपेक्षा अधिक है।  [16] पित्ताशय की पथरी का पारिवारिक इतिहास पित्ताशय के कैंसर के खतरे को दोगुना करता है।  [1] हालांकि, ज्यादातर मरीजों में पित्ताशय की सूजन या पित्त पथरी के कारण कैंसर नहीं होता हैं ।
  • आनुवांशिक कारक

(a) अग्न्याशय और पित्त नलिकाओ मे असामान्ताएँ- अग्नाशय और पित्त नली की कुछ जन्मजात असामान्यताओं के कारण पित्ताशय के कैंसर का खतरा बढ़ जाता हैं। [17,8]
(b) कोली डोकल सिस्ट (पुटक)- अनुवांशिक कोली डोकल पुटिका पित्त से भरी थैली होती हैं, जो पित्त-वाहिका से जुड़ी होती है। [18] कोली डोकल पुटक की दीवारों में अक्सर कैंसर से पूर्व होने वाले परिवर्तन होते हे जो पित्ताशय के कैंसर का जोखिम बढ़ा देते है। [4]

  • पित्ताशय पौलिप्स- पित्ताशय पौलिप पित्ताशय की दीवार की भीतरी सतह पर विकसित होता है परन्तु यह कैंसर युक्त नही होता है। [9, 11] पौलिप का विकास पित्ताशय में कोलेस्ट्राल के जमाव या सूजन के कारण गठित हो सकता है। [19]
    पित्ताशय का पौलिप लगभग 5% व्यस्को में पाया जाता है। [19] कैंसर का खतरा पौलिप के आकार पर निर्भर करता है। पौलिप का आकार जितना बड़ा होता जाता है, कैंसर का खतरा उतना ही बढ़ता जाता है। एक सेंटीमीटर से बड़ा पौलिप होने पर कैंसर की संभावना अधिक होती है। [9]
  • पारिवारिक इतिहास — यदि जी.बी.सी का पारिवारिक इतिहास परिवार के प्रथम स्तर रिश्तेदार में है तो व्यक्ति में पित्ताशय के कैंसर का खतरा लगभग पाँच गुना बढ़ जाता है। जिन जीन्स (बी.आर.सी.ए. 2) में उत्परिवर्तन के कारण गर्भाशय एवं स्तन के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है, वे पित्ताशय और पित्त नली के कैंसर के खतरे को भी बढ़ाते है। [21]
    ए पी ओ बी जीन के कुछ प्रकार का संबंध पित्ताशय के कैंसर के बढे हुए खतरे से दिखाया गया है और यह संबंध पित्त पथरी के होने पर निर्भर नहीं है। [22]
  • जीवनशैली सम्बंधित कारक –

(a) मोटापा- अत्यधिक मोटापा विभिन्न तरह के कैंसर के खतरे को बढ़ा देता है जिनमें पित्ताशय का कैंसर भी शामिल है।  [12] मोटापे का सीधा संबंध पित्ताशय के कैंसर से है। मोटापे संबंधी कैंसरो से महिलाओं में गर्भाशय का कैंसर और पुरुषों में लिवर कैंसर पहले स्थान पर है और पित्ताशय का कैंसर दूसरे स्थान पर हैं। [12] मोटापा पित्त की पथरी के लिये जोखिम कारक है जिसका पित्ताशय के कैंसर से सीधा संबंध है।  [23] ऐसा अनुमान है कि पुरुषो में दस में से एक एवं महिलाओं में पाँच में से एक पित्ताशय के कैंसर का सीधे मोटापे से संबंध है। [20]

(b) संक्रमण — टाइफाइड के जीवाणु साल्मोनेला के पुराने संक्रमण के कारण पित्ताशय में सूजन आ जाती है, जो लोगों में पित्ताशय के कैंसर के खतरे को बढ़ा सकती है। [24,25] साल्मोनेला टाइपफी वाहकों में से लगभग 6% में जी.बी.सी विकसित होने की संभावना देखी गई है और यह संबंध जी.बी.सी होने के खतरे को 12 गुणा तक बढ़ा सकता है। [9] कुछ अध्ययनों के अनुसार हेलिकोबेक्टर जीवाणु भी पित्ताशय के कैंसर का खतरा बढ़ाता है। [26,27]

(c) आहार — आहार में प्रोटीन और वसा की अधिकता तथा सब्जियों, फलों व फाइबर की कम मात्रा जी.बी.सी के लिये एक जोखिम कारक है। [14] भारत मे किये गये कुछ अध्ययन आहार और पित्ताशय के कैंसर के बीच संबंध दर्शाते हैं लेकिन आबादी के स्तर पर इसके वैज्ञानिक प्रमाण पर्याप्त नहीं है। [29]

  • रसायन- कुछ रासायनिक यौगिक जैसे नाइट्रोसोमाइनस (सिगरेट और कुछ औद्योगिक उत्पादो में पाया जाने वाला) जी.बी.सी के जोखिम में वृद्धि करते है। [30].
    भारत के कुछ गाँवो की स्थानिक जनसंख्या पर किये गये क्लस्टर विश्लेषण (जिला-वैशाली, बिहार,भारत) में पीने के पानी में भारी धातु प्रदूषण के साथ इस कैंसर का मजबूत संबंध दिखाया गया है। [16] अध्ययन बताते है की धातु या रबर उद्योग में कार्यरत धूम्रपान करने वाले लोगों में पित्ताशय के कैंसर के विकसित होने की संभावना अधिक रहती है। [16,30]

यदि आपको एक या अधिक जोखिक कारक है तो यह निश्चित नही है कि आपको पित्ताशय का कैंसर अवश्य हो जाएगा।

निवारण

पित्ताशय के कैंसर को रोकने के लिये कोई निश्चित साधन नहीं है। हम कुछ जोखिम कारक जैसे आयु, लिंग, जाति, नस्ल और जन्मजात असमान्यताओं को संशोधित नहीं कर सकते । लेकिन हम जोखिम कम करने के लिये सावधनी बरत सकते है। मोटापा एक महत्वपूर्ण जोखिम कारक है। इसलिये यह सलाह दी जाती है कि हमेशा सही वजन बनाये रखें एवं सक्रिय जीवन व्यतीत करें।

परिष्कृत अनाज के वजाए साबुत अनाज, ढाई कप फल व सब्जियाँ खाएँ एवं प्रसंस्कृत खाद्य और लाल माँस का सीमित मात्रा में सेवन करें। स्वस्थ आहार जी.बी.सी सहित कई तरह के कैंसरों के खतरे को कम कर देता है।

यदि पित्त की पथरी कोई भी समस्या उत्पन्न कर रही है तो चिकित्सक से परामर्श करना चाहिये और यदि जरूरी हो तो पित्ताशय को शल्यचिकित्सक द्वारा निकलवा लेना चाहिये।

पित्ताशय के कैंसर की प्रारंभिक अवस्था में अक्सर कोई लक्षण नही दिखाई देते लेकिन बाद के चरणों में कई लक्षण उभर कर आते हैं। जब तक चिकित्सक पित्ताशय के कैंसर का निदान करता है तब तक जी.बी.सी उन्नत चरण में पहुँच चुका होता है, और इलाज के विकल्प सीमित हो जाते है।
पित्ताशय के कैंसर के मामले प्रांरभिक दौर में तब पकड़े जाते है जब रोगी किसी अन्य कारण से चिकित्सक के पास आता है। पित्ताशय के कैंसर के अलावा कुछ अन्य बीमारियाँ भी पित्ताशय के कैंसर जैसे लक्षण पैदा कर सकती हैं। इसीलिए यह महत्वपूर्ण है कि आप अपनी जाँच करवायें और चिकित्सक से परामर्श करें।

पित्ताशय के कैंसर के सामान्य लक्षण:

पेट दर्द: पित्ताशय के कैंसर में अधिकांश लोगों को पेट के ऊपरी दाहिने हिस्से में दर्द होता है। यदि पित्त की पथरी या कैंसर पित्त नली (ब्लाॅक) को अवरुद्ध कर रहा है तो तेज दर्द हो सकता हैं।

मतली या उल्टी:

पीलिया: पित्ताशय के कैंसर से ग्रसित 50% व्यक्तियों में पीलिया होता है। [15]
पीलिया मे त्वचा और आँखो का सफेद हिस्सा पीला हो जाता है। पीलिया रक्त में बिलिरूबिन (एक रसायन जो पित्त को पीला रंग देता है) के संचयन होने के कारण होता है।  [17] पित्त जिगर से आँतो में प्रवाह नही कर पाता। इस वजह से बिलिरूबिन रक्त व उत्तकों में जमा हो जाता हैं। यह खुजली, पीला मूत्र या हल्के रंग का मल जैसे लक्षण पैदा कर सकता है। पीलिया होने का यह मतलब नहीं की आपको पित्ताशय का कैंसर है। पीलिया का एक और आम कारण जिगर में एक वायरस संक्रमण (हैपेटाइटिस) है। लेकिन अगर पीलिया जी.बी.सी के कारण है, तो यह कैंसर के एक उन्नत चरण को इंगित करता है।

पेट में गाँठ: यदि कैंसर का विकास पित्त नलिकाओं को अवरुद्ध कर देता है तो पित्ताशय की थैली का आकार अपने सामान्य आकार से बड़ा हो जाता है। यह पेट के दाहिने हिस्से में एक गाँठ के रूप में उभर सकता है।

अन्य लक्षण: पित्ताशय के कैंसर के कम पाए जाने वाले लक्षणों में जैसे भूख न लगना, बुखार, वजन, घटना आदि हैं।
पित्ताशय का कैंसर भारत के सभी हिस्सों में आम नहीं है। [6,8] पित्ताशय के कैंसर से मिलते जुलते संकेत एवं लक्षण किसी अन्य वजह से भी हो सकते है। उदाहरण के लिए पित्त की पथरी में भी यही लक्षण पाये जाते है। फिर भी यह महत्वपूर्ण है की यदि आपको न लक्षणों में से कोई भी एक है तो बिना विलंब के चिकित्सक से परामर्श करें और यदि जरूरत है तो इलाज करें।

निदान

  • इतिहास: पित्ताशय की थैली के कैंसर (जी.बी.सी.) में आम तौर पर प्रारंभिक दौर में संकेत एवं लक्षण नही दिखाई देते। लेकिन बाद की अवस्था में रोगियों में पेट दर्द, मतली और उल्टी, पीलिया, पेट में गाँठ, भूख न लगना, वजन घटना, पेट में सूजन, बुखार आदि लक्षण उपस्थित हो सकते हैं।
  • शारीरिक परीक्षण: शारीरिक परीक्षण ज्यादातर पेट में गाँठ, दर्द एवं तरल पदार्थ के जमाव पर ध्यान केंद्रित करता है। पीलिया का पता लगाने के लिए आँखो की जाँच की जाती है। कभी-कभी पित्ताशय की थैली का कैंसर लिम्फ नोड्स में फैलता है, इन बढ़े हुये नोड्स को त्वचा के नीचे महसूस किया जा सकता है।
  • रक्त परीक्षण: शीघ्र निदान हेतु कोई भी जैव रासायनिक परीक्षण उपलब्ध नही है।
    हीमोग्राम:
    लिवर फंक्शन टेस्ट: बढ़ा हुआ अल्कालाईन फास्पफेटेज और बिलीरूबिन स्तर अक्सर अधिक उन्नत रोग के साथ पाए जाते है।
    इमेजिंग परीक्षण: जी. बी. सी. से पित्ताशय में होने वाले संरचनात्मक बदलाव को दिखाता है। इसमें 40-65% मामलों में पित्ताशय के अंदर बढ़ा हुआ मांस, 20-30% में फोकल या फैला हुआ पार्श्विका का मोटा होना और 15-25% में लुमेन के अंदर पोलिप मिल सकता हैं।
  • पेट का अल्ट्रासाउंड: पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द होने के कारण का पता लगने के लिए यह एक प्रारम्भिक अध्धयन हैं। अल्ट्रसाउंड से जिगर में मेटास्टेटिक रोग का भी पता लगता हैं। पित्ताशय के कैंसर में अल्ट्रासाउंड की नैदानिक सटीकता 80% से अधिक हैं। [31]
  • सी.ई.सी.टी. (CECT) / एम.आर.आई (MRI): सीटी स्कैन का मुख्य लाभ यह है कि इससे पित्ताशय के आस पास के अंगो, वाहिकाओं व लिम्फ नोड्स में ट्यूमर का अन्तः सरण तथा ट्यूमर का दूर अंगो में स्थानान्तरण का पता लगता है। एम.आर.आई और सीटी स्कैन में पित्ताशय के कैंसर की संरचना एक समान दिखाई देती है।
  • एम.आर.आई (MRI) पेरिटोनियम में जमे कैंसर का पता लगाने के लिए यह परिक्षण उपयुक्त नहीं हैं। अन्य परिक्षण जैसे की एम. आर. सी. पी. (MRCP) तथा एम. आर. ए. (MRA) यकृत वाहिनी, रक्त वाहिकाओं, जिगर व लिम्फ नोड्स में कैंसर का फैलाव पता लगाने के लिए उत्तम नैदानिक वैधता रखते हैं। एम. आर. सी. पी. (MRCP) पीलिया से पीड़ित मरीजों में विशेषतः की जाती हैं। [32]
  • ई. आर. सी. पी. (ERCP): इस प्रक्रिया में उन नलिकाओ का एक्स-रे लिया जाता है; जो पित्त को जिगर से पित्ताशय की थैली में और पित्ताशय की थैली से छोटी आँत तक ले जाता है। इस प्रक्रिया में एक पतली रोशनी वाली ट्यूब को मुँह, ग्रास नली व अमाशय द्वारा छोटी आँत के पहले भाग मे पारित कर दिया जाती है। फिर एक छोटी ट्यूब को पित्त नलिकाओं में कैथेटर के माध्यम से पारित कर दिया जाता है और एक्स-रे लिया जाता है। कभी-कभी पित्ताशय की थैली के कैंसर के कारण ये नलिकायें संकीर्ण हो जाती है और पित्त के प्रवाह में बाधा उत्पन्न हो जाती है, जिसके कारण पीलिया हो जाता हैै। इस प्रक्रिया द्वारा उत्तक के नमूने भी जाँच के लिये ले सकते है।
  • बायोव्सी (टुकड़े की जाँच): यह प्रक्रिया आमतौर पर अल्ट्रासाउंड के मार्गदर्शन में की जाती हैै।

एफ.एन.ए.बी.(FNAB)/एफ.एन.ए.सी(FNAC):: इस जाँच में सिरिंज के साथ एक बहुत पतली सुई द्वारा कोशिकाओं का नमूना लिया जाता है। इसमें मरीज को बेहोश नही किया जाता। यह जाँच अल्ट्रासाउंड के निरीक्षण में भी की जा सकती है जिससे इसकी सटीकता बढ़ जाती है। [33]

कोर सुई बॉयोप्सी: इस प्रक्रिया में एक मोटी खोखली सुई द्वारा उत्तक का बेलनाकार टुकड़ा लेकर कैंसर की पुष्टि की जाती है। कोर बॉयोप्सी में एफ.एन.ए. सी. से ज्यादा अधिक उत्तक परीक्षण के लिये प्राप्त होता है। यदि शल्य चिकित्सक पित्ताशय की थैली से ट्यूमर निकालने की योजना बना रहा है तो, यह जरूरी नही है कि हमेशा बॉयोप्सी की जाए।

पीलिया के मरीजों में किये जाने वाले परिक्षण:

1. कोऐग्येलेशन प्रोफाइल
2. एम.आर.सी.पी. (MRCP)
3. ई.आर.सी.पी. (ERCP) या पी. टी. सी. (PTC)
4. विस्तारित कोलीसिस्टेक्टमी के लिए सूचित सहमति पत्र

वैकल्पिक जाँच:
– पोजीट्राॅन एमिशन टोमोग्राफी पी.ई.टी. (PET) स्कैन
– ट्यूमर मार्कर: सीरम सी.ए. 19-9, सी.ई.ए. पित्ताशय के कैंसर के निदान में बहुत विशिष्ट नही है। पर इनकी बढ़ी मात्रा निदान में सहायक हो सकती है। [34]

कैंसर की स्टेजेस का पता लगाने के लिए जांच: यह इसलिए ज़रूरी है क्यूंकि पित्त की थैली के कैंसर के ीालज़ और उसके बाद मरीज़ को इसका किता फायदा होगा ये बीमारी के स्टेज पर निर्भर करता है |

1 )एक्सप्लोरेटरी सर्जरी :इसमें डॉक्टर शरीर के अंदर बीमारी का फैलाव देखते हैं | इसे लैप्रोस्कोपी कहा जाता है | इसमें डॉक्टर पेट पर एक छोटा सा कट देते हैं और उसमे से लैप्रोस्कोपी डाला जाता है |

2 ) पित्त की नलिकाओं का टेस्ट :इन नलिकाओं में डाई डालकर X -रे की मदद से नलिकाओं में रुकावट देखि जाती है क्यूंकि कैंसर से बढ़ी हुई थैली इन नलिकाओं पर दबाव डालती है | इन टेस्ट के नाम हैं :
a )एंडोस्कोपिक रेट्रोग्रेड कोलेनजिओपैनक्रिएटोग्राफी
b )मैग्नेटिक रेजोनेंस कोलेन्गिओग्राफि
c ) परकटेनियस ट्रांस -हीपैटिक कोलेन्गिओग्राफी
d )सी. टी. स्कैन – पेट और छाती का
e )अल्टरा साउण्ड , एम् . आर . आई -लिवर का
f ) पेट् स्कैन -पॉज़िट्रान एमिशन टोमोग्राफी

पित्त की थैली के कैंसर की स्टेजेस :

स्टेज 1 :कैंसर पित्त की थैली की अंदरूनी परत तक ही फैला होता है |
स्टेज 2 :कैंसर पित्त की थैली की बाहरी दिवार तक या कई बार उससे भी बहार तक फ़ैल जाता है
स्टेज 3 : कैंसर आस-पास के अंगों जैसे लिवर ,आँतों और कई बार आस-पास के लिम्फ नोड्स में भी फ़ैल जाता है |
स्टेज 4 :यह सबसे आखिरी स्टेज का कैंसर है जब यह शरीर के कई अंगों और लिम्फ नोड्स जो पित्त की थैली से दूर हैं ,तक भी फ़ैल गया होता है |

इलाज :

पित्त की थैली के कैंसर का इलाज इस बात पर निर्भर करता है कि वह किस स्टेज का है ,मरीज़ का शारीरिक स्वास्थ्य किस स्तर का है और मरीज़ किस तरह से इलाज चाहता है |

शुरुवाती स्टेज :यदि कैंसर शुरुवाती स्टेज में होता है तो इसका इलाज ऑपरेशन द्वारा किया जाता है और इसे निकाल दिया जाता है लेकिन जब यह कैंसर बढ़ जाता है तब नॉन सर्जिकल तरीके जैसे कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी से इसका इलाज किया जाता है |
शुरुवाती स्टेज के कैंसर का इलाज:
a ) ऑपरेशन द्वारा पित्त की थैली को निकालना
b )यदि कैंसर थोड़ा बोहोत लिवर और बाइल डक्ट (पित्त की थाली की नलिकाएं ) तो उस सूरत में पित्त की थैली के साथ लिवर और बाइल डक्ट का हिस्सा भी निकालना पड़ता है |
ऑपरेशन के बाद कीमोथेरेपी एवं रेडियोथेरेपी देने का फैसला डॉक्टर मरीज़ की बीमारी के स्तर और शारीरिक अवस्था के हिसाब से तय करते हैं |

लेट स्टेज (बढे हुए या फैले हुए ) कैंसर का इलाज :आमतौर से जब कैंसर फ़ैल जाता है तो ऑपरेशन द्वारा उसका इलाज संभव नहीं होता | ऐसे में उसे केवल रेडियोथेरेपी,कीमोथेरेपी या दोनों को मिलकर जिसे कॉम्बिनेशन थेरेपी कहा जाता है ,दी जाती है ताकि मरीज़ की तकलीफ काम हो सके | कीमोथेरेपी दवाइयां से कैंसर की कोशिकाओं को ख़त्म किया जाता है |
रेडिएशन थेरेपी : हाई पावर बीम जैसे X -रे से कैंसर की कोशिकाओं को ख़त्म किया जाता है |
लेट स्टेज का कैंसर पित्त की नलिकाओं में भी रुकावट पैदा कर सकता है | इसके लिए ऑपरेशन द्वारा धातु (मेटल) का स्टंट दाल कर या बिलियरी बाईपास (रुकावट के आस-पास की पित्त नलिका को निकालना ) द्वारा इसे ठीक किया जाता है |

For more information please visit http://www.icmr.nic.in/guide/cancer/Gall%20Bladder/GALLBLADDER%20CANCER.pdf

संदर्भ

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