अमाशय का कैंसर

अमाशय का कैंसर क्या हैं?

जो कैंसर पेट के अंदर कहीं भी शुरू होता है या अमाशय की दीवार से जुडी कोशिकाओं को प्रभावित करता है उसे अमाशय का कैंसर कहा जाता है ।

अमाशय शरीर के ऊपरी हिस्से में फेफडों के विल्कुल नीचे की ओर स्थित एक माँसलीय थैलीनुमा अंग है जो तीन भागों में विभाजित है :
(i) कार्डिया का शीर्ष भाग जो ग्रासनली से जोडता है ।
(ii) फंडस , पेर का मध्य या मुख्य भाग
(iii) पेर का अंतिम या निचला हिस्सा पाइलोरस और एन्ट्रम, कार्डिया , फंडस और शरीर । कार्पेस को एक साथ समीपस्थ पेट कहा जाता है और अंतिम दो भागों अर्थात एंट्रम और पाइलोरस पेट का दूरस्थ हिस्सा बनाते है । पेट के समीपस्थ हिस्से में कुछ कोशिकाएं एसिड या अम्ल बनाती है ,पेप्सिन नामक एक पाचन एंजाइम होता है जो भोजन के पाचन में मदद करता है । शरीर में एक आंतरिक प्रोटीन होता है जो विटामिन बी-12 के अवशोषण की सुविधा प्रदान करता है ।

भोजन का संचालन दो वाल्व द्वारा नियंत्रित किया जाता है एक ऊपरी तरक जो पेट को गले के साथ जोडता है जिसे कार्डियक स्किंटर कहते है । यह अन्न को अन्दर से नियंत्रित करता है । पेट के निचली तरक दूसरा यंत्र होता है जो आंत्र से पेट को जोडता है , इसे पाइलोरिक स्किंटर कहा जाता है ।

यद्यपि पेट के किसी भी हिस्से में कैंसर शुरू हो सकता है ज्यादातर अमाशय के कैंसर में पेट के भीतरी हिस्से की ग्रंथि कोशिकाओं (जो म्यूकस और अन्य तरल पदार्थ बनाती और छोडती है ) से उत्पन्न होता है । इन्हें एडिनोकार्सिनोमा कहा जाता है ।

हम जो भोजन निगलते है वह ग्रासनली की मासपेशियों द्वारा पेट में धकेल दिया जाता है । पेट द्वारा स्त्रावित अम्ल द्वारा भोजन आगें की पाचन प्रकिया हेतु छोटी आंत में आ जाता है । पेट के दीवार की ग्रंथियों द्वारा अम्ल का रिसाब होता है जिसकी प्रकृति अम्लीय होती है । पेट में अम्ल और प्रोटीन (एंजाइम) का उप्पादन एवं रिसाब जारी रहता है , भले ही पेट खाली हो । एसिड और पेप्सिन से पेट की दीवार की रक्षा की लिये मोटी म्यूकस की परत पैदा होती है ।

आँकड़े

*अमाशय का कैंसर भारत में छटवें स्थान पर है । होंठ : मुख का कैंसर और फेफडों का कैंसर के बाद यह तीसरा सबसे आम कैंसर है । महिलाओं में आम कैंसर में यह छठे नंबर पर है ।

*वर्ष 2012 में भारत में अमाशय के कैंसर के लिये अनुयानित आयु समायोजि घटना दर 8.6 प्रति 100,000 आबादी थी । वर्ष 2012 में अमाशय कैंसर के पुरुषों में मामले अनुमात: 43354 थे। पुरुषों में घटना दर महिलाओं से लगभग दोगुनी है । वर्ष 2012-14 की रन सी आर पी रिपोर्ट के मुताबिक बारह उतरपूर्वी राज्य अमाशय के कैंसर के मामलों में शीर्ष स्थान पर है ।

पांपपर जिला (50.2) , ऐजोल (43.9) , मिजोरम राज्य (41.1) और मिजोरम ऐजोल जिलों से अतिरिक्त (39.3) उतर पूर्वी राज्यों में इस कैंसर को घटना दरों में सबसे अग्रिम है । दक्षिण राज्यों में चेन्नई सबसे अग्रिम स्थान पर है ।

*अमाशय के कैंसर की आयु मानकीकृत वार्षिक घटना पर भारत में व्यापक रूप से पुरुषों में 1.2 से 50.2 /100000 पुरुष है और महिलाओं में प्रति 100,000 में से 0.8 से 29.2 मामले दर्ज होते है ।

 

यह ज्ञान नही है की अमाशय का कैंसर होने के क्या कारण है पर शोध द्वारा कुछ जोखिम कारकों का पता चला है जो अमाशय के कैंसर के खतरे को बढाते है। इन जोखिम कारकों के होने का मतलब यह नही है कि व्यक्ति को निशिचत ही अमाशय का कैंसर हो जायेगा । ज्यादातर अमाशय के कैंसर बदलती जीवनशैली संबधित है।

संशोधन योग्य (जोखिम कारक)
इन जोखिम कारकों में फल और सब्जियों की कम खपत , अधिक नमक का सेवन , धूम्रपान और संरक्षित खाध-पदार्थ, तंबाकू चबाना और विकिरण का अनावरण शामिल है ।
(a) आहार : ऐसा माना जाता है की अमाशय के कैंसर को बढ़ाने में आहार एक प्रमुख भूमिका निभाता है । नमक का अधिक मात्रा में सेवन , स्मोकड भोजन , संरक्षित खाध पदार्थ अमाशय के कैंसर के बढते जोखिम से जुडे होते है ।
(b) फल और सब्जियाँ: बहुत कम मात्रा में फल और सब्जियाँ का सेवन भी पेट के कैंसर होने का खतरा बढाता है । संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि और संगठन की सिकारिश के अनुसार है । संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि और संगठन की सिकारीश के अनुसार प्रतिदिन प्रति व्यक्ति कम से कम 400 ग्राम फल और सब्जियों का सेवन करना चाहिये ।
(c) नमक : भोजन में नमक की अधिकता अमाशय के कैंसर के खतरे को बढाती है । हमारे द्वारा खाए जाने वाले अधिकांश भोज्य पदार्थ जिनमें नमक की मात्रा अधिक होती है जैसे अचार , रोटी , अनाज आदि इस खतरे को बढाते है । यदि आप बहुत मसालेदार सब्जियाँ खाते हैं जिनमें उच्छ नमक हैं , वी भी इस कैंसर के जोखिम को बढाते हैं ।
(d) माँस : संसाधित माँस का सेवन अमाशय के कैंसर के खतरे को बढाता हैं । जैसे बेकन , सलामी और सासेज इत्यादि । भारत सरकार की सिफारिश के अनुसार दिन में 90 ग्राम से अधिक लाल और प्रसंस्कृत माँस न खाने की सलाह दी गई हैं और 70 ग्राम तक ही पके हुये माँस को खाने की सीकारिशं की गई हैं ।
(e) स्मोक्ड फ़ूड : इन भोज्य पदार्थो से हानिकारक रसायन उत्पन्न होते हैं तथा इनका अधिक मात्रा में सेवन अमाशय के कैंसर के जोखिम को बढाता हैं ।
(f) उपचारित माँस : इस विधि में भोजन में संरक्षण हेतु नमक , चीनी , नाइट्रेट्स / नाईट्राइट्स डाले जाते हैं । नाइट्रेट्स , व नाईट्राइट्स ‘ एच पाइलोरी ‘ कीटाणु से प्रतिक्रिया करके हानिकारक पदार्थ ‘ नाइट्रोसामीन ‘ बनाते हैं जो कैंसर का खतरा बढाने की क्षमता रखता हैं ।
(g) धूम्रपान (तंबाकू) गैर धूम्रपान करने वालों की तुलना में धूम्रपान करने वालों को अमाशय के कैंसर का खतरा अधिक रहता है।

कुछ भारतीय अध्ययनों के अनुसार पेट (अमाशय) के ऊपरी हिस्से के कैंसर के विकास में धूम्रपान एक बड़ा जोखिम कारक हैं । धूम्रपान करने वालों को कैंसर के अधिक जोखिम होता है । उनकी तुलना में जो धूम्रपान छोड़ चुके हैं । तंबाकू चबाने से अमाशय के कैंसर का खतरा अधिक बढ जाता हैं । तंबाकू के उपयोग की मात्रा में वृद्धि के साथ जोखिम की बढती प्रवृति भी देखी गई हैं ।

(h) मधपान : पुरुषों में अत्याधिक मात्रा में शराब का सेवन अमाशय के कैंसर के खतरे को अधिक बढाता हैं ।
(i) हेलिकोबेक्टर पाइलोरी : यह आमतौर पर एक बैक्टीरिया होता हैं जो पेट और पचनंतत्र के अंदर पाया जाता हैं । इसे पेप्टिक अल्सर और गैस्ट्रिटिस होने का मुख्य कारण माना जाता हैं ।

हेलिकोवेक्टर पायलोरी बैक्टीरिया पेट की आंतरिक झिल्ली पर हमला करता हैं । यह झिल्ली एसिड से पेट की दीवार की रक्षा करती हैं । यह बैक्टीरिया युरिएस नामक को ऐंजाइम को स्रावित करता है। यूरिकएज रासायनिक यूरिया को अमोनिया और बाइकाबेनिट में परिवर्तित करके उसके अम्लीय वातावारण को निष्क्रिय करता है । ये उत्पाद पेट की आंतरिक झिल्ली को कमजोर करते हैं और अम्ल को पेट के संवेदनशील परत में  प्रवेश करने की अनुमति देते हैं , जिससे अल्सर या घाव बनते हैं । इस बैक्टीरिया का आकार अमाशय की श्लेष्म परत में जाने की सहूलियत देता है , जो पेट की अंदरूनी जगह से कम अम्लीय हैं । इसके कारण अल्सर से खून आ सकता हैं और संक्रमण हो सकता हैं । या पाचनतंत्र के माध्यम से भोजन को आगे बढने से रोक सकता है। चूंकि यह बैक्टीरिया धीमी गति से बढता है इसलिये इससे संक्रमित अधिकतर लोगों में लक्षण नही दिखाई देते । लेकिन इसके संक्रमण वाले लोगों को पेप्टिक अल्सर होने की संभावना अत्यधिक होती है । इसका इलाज ऐंटी बायोटिक्स के साथ किया जा सकता है । यदि ध्यान न दिया जाये तो पेप्टिक अल्सर आगे अमाशय के कैंसर का कारण बन सकते हैं।
(j) कुछ चिकित्सीय जो अमाशय के कैंसर का कारण बनती है।

1 . संशोधित जोखिम कारकों के संपर्क में आने से बचें।

2 . सुरक्षात्मक कारकों को अपनायें जो अमाशय के कैंसर के खतरे को कम कर सकते है ।

3 . हेलिकोबेक्टर पायलोरी बैक्टीरिया के संक्रमण का समय से उपचार करें ।

4 . धूम्रपान का उपयोग न करें ।

5 . शराब का सेवन न करें या सीमित मात्रा में ही करें ।

1 . निगलने में कठिनाई (डिस्फेगिया)
2 . खाने के बाद पेट फुला महसूस होना ।
3 . थोडा सा खाने के बाद भी पेट भरा हुआ लगना
4 . सीने में जलन
5 . अपच जो हमेशा मौजूद रहती है और डकारें आना
6 . निरंतर मतली या उबकाई सा महसूस होना
7 . उल्टी में खून आना
8 . बिना वजह वजन घटना
9 . थकान
10 . कब्ज
11 . काला मल या मल में रक्त का उपस्तिथ होना
12 . पेट में पानी एकत्रित होना या सूजन
13 . सांस लेने में परेशानी (खून की कमी के कारण )
उपरोक्त किसी भी लक्षण की उपस्तिथि का अर्थ यह नही है की आपकों निशिचत रूप से अमाशय का कैंसर है लेकिन यदि आपको इनमें एक या अधिक लक्षण हों तो तुरंत चिकित्सक से परामर्श करें ।

क्या पेट के कैंसर के लिए स्क्रीनिंग टेस्ट हैं?
गैस्ट्रिक कैंसर के लिए कोई नियमित जांच परीक्षण नहीं है। हालांकि, निम्नलिखित स्क्रीनिंग परीक्षणों से उन लोगों को लाभ हो सकता है जिन्हे गैस्ट्रिक कैंसर का जोखिम विरासत में मिले सिंड्रोम या क्रोनिक गैस्ट्रिक एट्रोफी के कारण है अथवा जो उन स्थानों में रहते हैं जहाँ ज्यादा संख्या में पेट के कैंसर के मामले पाए जाते हैं:
(1) बेरियम-भोजन फोटोफ्लुरोग्राफी: यह खाने की नली और पेट के एक्स-रे की एक तकनीक है | इसमें व्यक्ति को बेरियम (एक यौगिक धातु जो खाने की नली और पेट पर परत बना लेता है)युक्त तरल पदार्थ पीने के लिए दिया जाता है |
(2) ऊपरी जीआई एंडोस्कोपी: यह एक ऐसी तकनीक है जिसमें खाने की नली और आंतों (गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल ट्रैक्ट) की लाइनिंग देखने के लिए कैमरे वाली लचीली ट्यूब का इस्तेमाल किया जाता है।
(3) सीरम पेप्सिनोजेन स्तर: सीरम में पेप्सिनोजन का काम मात्रा में होना लम्बे समय से गैस्ट्रिक शोष (क्रोनिक गैस्ट्रिक एट्रोफी ) को दर्शाता है जो पेट के कैंसर के लिए एक जोखिम कारक है।

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इसका निदान कैसे किया जा सकता है?

पेट के कैंसर के निदान के लिए इस्तेमाल की जाने वाली टेस्ट और प्रक्रिया में निम्लिखित शामिल हैं:

 ऊपरी जीआई एंडोस्कोपी (एसोफैगोगैस्ट्रोडोडेनोस्कोपी या ईजीडी): कैंसर के संकेतों की तलाश के लिए माइक्रो कैमरा युक्त एक पतली, लचीली रोशनी वाली ट्यूब को मुंह के माध्यम से आपके पेट में डाला जाता है। यह डॉक्टर को आपके पेट के अंदरूनी सतह की जांच करने देता है। यदि कोई संदिग्ध क्षेत्र पाया जाता है, तो प्रयोगशाला(लैब ) परीक्षण के लिए उस जगह (बायोप्सी) से ऊतक का एक छोटा टुकड़ा लिया जाता है।

 एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड (EUS): एंडोस्कोप की नोक पर एक छोटा ट्रांसड्यूसर रखा जाता है। रोगी को बेहोश किया जाता है और एंडोस्कोप को गले के नीचे और पेट में डाला जाता है। यह चिकित्सक को पेट की दीवार की परतों को देखने में मदद देता है। यदि कैंसर होता है, तो डॉक्टर कैंसर फैलने की सीमा निर्धारित करने के लिए पेट के ठीक पास के लिम्फ नोड्स और अन्य संरचनाओं की जांच कर सकते हैं। EUS का उपयोग ऊतक के नमूने (EUS-निर्देशित सुई बायोप्सी) प्राप्त करने के लिए एक संदिग्ध क्षेत्र में सुई का मार्गदर्शन करने में मदद करने के लिए भी किया जा सकता है।

इमेजिंग परीक्षण: कम्प्यूटरीकृत टॉमोग्रैपी (सीटी) और एक बेरियम निगल परीक्षण (एक विशेष प्रकार की एक्स-रे परीक्षा)। इमेजिंग मुख्य रूप से पेट के कैंसर का स्तर निर्धारित करने के लिए और निओदुजुवेंट केमोथेरेपी (एनएसीटी) के बाद उपचार की प्रतिक्रिया का मूल्यांकन के लिए भी किया जाता है |

 बायोप्सी: एंडोस्कोपी के दौरान पाए जाने वाले एक संदिग्ध-दिखने वाले क्षेत्र से एक छोटा ऊतक टुकड़ा लिया जाता है। पेट के कैंसर के फैलने की पुष्टि के लिए बायोप्सी को पास के लिम्फ नोड्स या शरीर के अन्य हिस्सों में संदिग्ध दिखने वाले क्षेत्रों से भी लिया जा सकता है।

स्तर और उपचार:
स्टेज I : कैंसर ऊतक की ऊपरी परत तक सीमित है जो पेट के अंदर की परतों को दर्शाता है। कैंसर कोशिकाएं पास के 1 या 2 लिम्फ नोड्स में भी फैल सकती हैं।
स्टेज II: कैंसर पेट की दीवार की गहरी मांसपेशियों की परत में बढ़ गया है और पास के लिम्फ नोड्स में फैल गया है।
स्टेज III: कैंसर पेट की सभी परतों के माध्यम से हो सकता है और आस-पास की संरचनाओं में फैल सकता है या लिम्फ नोड्स में अधिक व्यापक रूप से फैल गया है।
स्टेज IV: कैंसर शरीर के दूर के क्षेत्रों में भी फैल गया है।

पेट के कैंसर का उपचार कैंसर के विकास और प्रसार पर निर्भर करता है। उपचार के विकल्पों में शामिल हैं:
 बहुत शुरुआती कैंसर के लिए एंडोस्कोपिक रिसेक्शन
 आंशिक गैस्ट्रेक्टोमी
 सम्पूर्ण गैस्ट्रेक्टोमी
 कीमोथेरेपी (दवाओं का उपयोग)
 रेडियोथेरेपी
 जिन कैंसर को पूरी तरह से हटाया नहीं जा सकता है उन मरीज़ों को आराम देने के लिए सर्जरी की
जाती है |
 लक्षित थेरेपी या इम्यूनोथेरेपी उच्च स्तर के पेट के कैंसर में भी सहायक हो सकती है

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