- फेफड़ों का कैंसर
- क्या आप खतरे में है ?
- फेफड़ों के कैंसर की रोकथाम
- चिकित्सक से कब सलाह लें?
- शुरुआती पहचान के लिए जांच
- निदान कैसे संभव हैं?
- चरण & इलाज
- संदर्भ
फेफड़े छाती में स्पंज की तरह शंकु के आकार के अंगो की एक जोड़ी है। यह हमारी श्वसन प्रणाली का हिस्सा है। बाँया फेफड़ा आकार में छोटा होता है क्योंकि हृद्धय बाँयी तरफ जगह लेता है। बाँए फेफड़े में दो भाग पालि होते है और दाएँ फेफड़े में तीन पालि होते है। फेफड़े एक पतले आवरण से ढके होते है। जिसे परिफुफ्फुस (प्लूरा) कहा जाता है, जो साँस लेते और छोड़ते समय फेफड़ो की मदद करता है।एक पतली गुम्बंद के आकार के माँसपेशी फेफडों के नीचे होती है जो पेट से छाती को अलग करती है। इसे डायाफ्राम कहते है। साँस लेने के दौरान डायाफ्राम ऊपर और नीचे की ओर आता है और फेफडों में से हवा अंदर व बाहर करता है।
फेफडों का मुख्य कार्य साँस और रक्त के बीच गैसों का आदान प्रदान करना है। ऑक्सीजन फेफडों के माध्यम से शरीर में प्रवेश करती है और कार्बन डाईआक्साईड साँस द्वारा बाहर छोड़ी जाती है।
श्वासनली दो भागों में विभाजित होकर दाएँ फेफडों में प्रवेश करती है। प्रत्येक फेफडों के अंदर ब्रांक्स ट्यूबो में माध्यमिक ब्रांकाई में विभाजित होता है। ये माध्यमिक ब्रांकाई आगे विभाजित होकर ब्रांकिओल्स बनाते है। ब्रांकिओल्स के अंत में एअर बैग होते है, जिन्हें एल्व्योलाई कहते है। इन एल्व्योलाई से कई रक्त कोशिकाएँ गुजरती है जिनसे गैसों का आदान प्रदान होता है।
फेफड़ों का कैंसर क्या हैं?
फेफड़ों का कैंसर एक प्रकार का कैंसर है जो फेफड़ों में होता है। [2]. यह लिम्फ नोड्स या शरीर के अन्य अंगों में फैल सकता है।
फेफड़ों के कैंसर को मुख्यत: दो भागों में विभाजित किया गया है- एन.एस.सी.एल.सी. और एस.सी.एल.सी. (ट्यूमर कोशिकाओं की रचना के आधार पर) [3] एन.एस.सी.एल.सी. कैंसर (75-80 प्रतिशत) एन.एस.सी.एल.सी. कैंसर (15-20 प्रतिशत) की तुलना में अधिक पाया जाता है। [4]
आँकड़े
तालिका : भारत में फेफड़ों का कैंसर (ग्लोबोकान 2012 के अनुसार) [5]
घटना | मृत्यु | |
फेफड़ों के कैंसर (पुरूष) | 54,000 | 49,000 |
महिला | 17,000 | 15,000 |
दोनों लिंगों में | 70,000 | 64,000 |
तालिका : लिंगानुसार फेफड़ों के कैंसर के आँकड़ें [6]
पुरूष | महिला | दोनों लिंगों में | |
75 वर्ष से पूर्व होने वाले कैंसर का जोखिम (प्रतिशत) | 10.2 | 10.8 | 10.4 |
75 वर्ष की आयु से पूर्व कैंसर से होने वाली मृत्यु दर (प्रतिशत) | 8.0 | 7.1 | 7.5 |
औसत आयु : 54.6 वर्ष
पुरूष: महिला अनुपात = 4.5:1, यह अनुपात आयु तथा धूम्रपान से प्रभावित होता है।
यह अनुपात 51-60 वर्ष की उम्र तक निरंतर बढ़ता है और उसके बाद स्थिर हो जाता है।
40 वर्ष की उम्र तक स्मॉल सैल कैंसर (एस. सी. एल. सी.) अधिक पाया जाता है और इसका संबंध धूम्रपान से काम देखा गया है। 40 वर्ष की उम्र के बाद धूम्रपान करने वाले व्यक्तियों में स्कटेमस सैल कैंसर तथा धूम्रपान ना करने वालों में एडिनोकार्सिनोमा अधिक होता है।
क्या आप खतरे में है ?
फेफड़ें के कैंसर के खतरे को बढ़ाने में कई कारक सहायक है। इनमें से कुछ जोखिम कारकों को जीवन शैली में परिवर्तन द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है, जबकि कुछ अन्य कारकों को जैसे पारिवारिक इतिहास को नियंत्रित नही किया जा सकता।
फेफड़ों के कैंसर के लिये जोखिम कारक:
•तम्बाकू धूम्रपान: तम्बाकू का उपयोग किसी भी रूप में हानिकारक है चाहे धूम्रपान हो या निर्धूम (धूम्ररहित)। सिगरेट और बीड़ी धूम्रपान फेफड़ों के कैंसर के लिये प्रमुखतम जोखिम कारक है। [7,8] निर्धूम तम्बाकू के इस्तेमाल से होंठ, मुँह, ग्रासनली, पाचन, श्वसन और छाती के अन्दरूनी अंगो के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। [7] तम्बाकू के जहरीले रसायनों की वजह से फेफड़ों की कोशिकाओं को नुकसान पहुँचता है और वे असामान्य रूप से विकसित हो जाती हैं। [8]
सिगरेट पीने से किसी भी व्यक्ति में फेफड़े के कैंसर होने की संभावना 15 से 30 गुना तक बढ़ जाती है। [9] इन लोगों की फेफड़े के कैंसर से भरने की संभावना भी उन व्यक्तियों की तुलना में अधिक हो जाती है जो धूम्रपान नही करते सिगरेट की बढ़ती संख्या के साथ फेफड़ों के कैंसर से मरने की संभावना बढ़ती जाती है। प्रत्येक दिन धूम्रपान की बढ़ती संख्या और उसकी बढ़ती अवधि के साथ यह खतरा बढ़़ता जाता है। [7,10]
यदि व्यक्ति धूम्रपान छोड़ दे तो जोखिम कम हो सकता है। फेफड़ों के कैंसर के अलावा धूम्रपान के कारण शरीर में कहीं भी कैंसर हो सकता है जैसे सिर और गर्दन का क्षेत्र, पेट, जिगर, अग्नाशय, मलाशय, मूत्राशय, गुर्दे, गर्भाशय ग्रीवा, रक्त और अस्थिमज्जा (बोन मैरो)। [11]
भारत में फेफड़ों के कैंसर से ग्रस्त 87 प्रतिशत पुरूष और 85 प्रतिशत महिलाओं में धूम्रपान का इतिहास पाया जाता है। [12, 13, 14] करीब 3 प्रतिशत रोगियों में निषिक्रय धूम्रपान का इतिहास पाया गया है। बीड़ी की तुलना में सिगरेट में कैंसर विकसित होने वाले तत्व ज्यादा पाये जाते हैं। [4] ‘हुक्का धूम्रपान‘ भी फेफड़ों के कैंसर के साथ संबंधित है। [15]
•निष्क्रिय धूम्रपान (एस.एच.एस.): यदि कोई व्यक्ति स्वयं धूम्रपान नही करता, फिर भी किसी अन्य व्यक्ति के धूम्रपान के कारण उसे फेफड़ों के कैंसर होने का जोखिम बढ़ जाता है। इसे निष्क्रिय ‘धूम्रपान‘ या ‘पर्यावरणीय धूम्रपान‘ कहा जाता है। [13]
ग्लोबल एडल्ट टोबेको सर्वे (जी.ए.टी.एस) द्वारा यह पता चलता है कि लगभग 52 प्रतिशत (ग्रामीण 58 प्रतिशत, शहरी 39 प्रतिशत) व्यस्क निष्क्रिय धूम्रपान से ग्रस्त है। [16]इसके कारण घर के पर्दे, कपडे, कालीन, भोजन, फर्नीचर और अन्य इस्तेमाल सामग्री में धुआँ लगने से जहरीले रसायन कण चिपक जाते है जो निष्क्रिय धूम्रपान के लिये जिम्मेदार होते है। [17] घर में जितने ज्यादा लोग धूम्रपान करते है, जोखिम उतना ही बढ़ जाता है। करीब 3 प्रतिशत रोगियों में निष्क्रिय धूम्रपान का इतिहास पाया गया है। [18,19]
•अभ्रक: एस्बेस्टोस (अभ्रक) को एक मानव कैंसरजन के रूप में वर्गीकृत किया गया है और यह सीधा और वैज्ञानिक रूप से फेफड़ों के कैंसर और अन्य साँस की तकलीफों से जुड़ा हुआ है। [20] अभ्रक अपने बेहद टिकाऊ और आग प्रतिरोधी शक्ति के कारण जाना जाता है। इसको व्यापक रूप से घर निर्माण साम्रागी, मोटर वाहन भागो और वस्त्रों में इस्तेमाल किया जाता है। [20] अभ्रक तंतु प्रकृति में सूक्ष्म होते है और जब सांस द्वारा अंदर जाते है तो फेफड़ों में जलन पैदा कर सकते है।
धूम्रपान और अभ्रक के व्यवसयिक जोखिम का संयोजन बहुत खतरनाक है। [11]
•रासायनिक कार्सिनोजन का व्यवसायिक जोखिम: आर्सेनिक, क्रोमियम, डीजल निकास, सिलिका और निकल भी फेफड़ों के कैंसर के जेखिम को बढ़ा सकते है। [21, 22] यह जोखिम और अधिक बढ़ सकता है, अगर व्यक्ति धूम्रपान भी करता है। उद्योगों रबड़ विनिर्माण, लोहा ओर इस्पात, पेटिग में प्रयोग होने वाले रसायन भी जोखिम कारक माने गये है। [21]
अधिक पढ़ें [23]
•रेडान: रेडान के संपर्क में आने से कुछ कैंसर, जैसे फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ने की संभावना होती है। रेडान, अदृश्य व गंधहीन गैस होती है जो यूरोनियम टूटने से निकलती है तथा हवा के साथ मिलकर सांस द्वारा अंदर जाती है। [20, 22-25] इनडोर रेडान का मुख्य स्त्रोत मिट्टी, निर्माण सामग्री, पानी के नल और खाना पकाने वाली प्राकृतिक गैस है। यह गैस घरों और इमारतों में असुरक्षित स्तर तक जमा हो सकती है। रेडान का संचय कम करने के लिये बेसमेंट को अच्छी तरह से हवादार रखना चाहिये। [20, 24, 25]
•पारिवारिक/फेफड़ों के कैंसर का निजी इतिहास: प्रथम स्तर रिश्तेदारी में फेफड़ों के कैंसर का इतिहास होना फेफड़ों के कैंसर के खतरे को बढ़ा देता है। [26] यदि एक फेफड़ें में कैंसर है तो भी दूसरे में भी होने का खतरा बढ़ जाता है। [27] कैंसर उपचार प्राप्त व्यक्ति जिन्हें छाती में विकिरण चिकित्सा मिली है उन्हें भी उच्च जोखिम हैं। [10] यदि पारिवारिक इतिहास सकारात्मक है तो जोखिम और भी बढ़ जाता है। [10]
•घर के अंदर कोयला जलाना: ऐसे पर्याप्त प्रमाण है की खाना पकाने या गर्म करने के लिये कोयले को घर के अंदर जलाने से फेफड़ों के कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। [28] खराब हवादार मकान, खाना पकाने के लिये पांरपरिक स्टोव का प्रयोग वायु प्रदूषण के स्तर को बढ़ाते हैं, जिसके परिणाम स्वरूप स्वास्थ्य को क्षति पहुंचती है। [28]
•फेफड़ों में संक्रमण: क्लैमाइडिया संक्रमण, निमोनिया या तपेदिक (टी.बी.) आदि फेफड़ों के कैंसर के खतरे को बढ़ा सकते है। [29, 30] अनुसंधान इंगित करता है कह जो लोग टी.बी. से ग्रस्त है उनमें फेफड़ों के कैंसर का खतरा दोगुना हो जाता है। [31]
•आहार: ऐसे साक्ष्य है कि कुछ आहार कारक फेफड़ों के कैंसर के लिये सुरक्षात्मक हो सकते है और कुछ फेफड़ों के कैंसर के खतरे को बढ़ा सकते है। जैसे बीटा कैरोटीन युक्त खाद्य पदार्थों (जैसे गाजर) का कम सेवन फेफड़ों के कैंसर के जोखिम को बढ़ाता है। [32]
विटामिन ए की कमी धूम्रपान करने वालों में फेफड़ों में स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा (एक प्रकार का फेफड़ों का कैंसर) को विकसित करने की संभावना बढ़ता है। [33] इसके अलावा पीने के पानी (मुख्य रूप से निजी कुएँ से) में पाया जाने वाला आर्सेनिक, फेफड़ों के कैंसर के खतरे को बढा़ सकता है। [34]
फेफड़ों के कैंसर से बचाव [35, 36, 37]
कोई ऐसा सिद्ध तरीका नही है जो फेफड़ों के कैंसर से पूर्णरूप से बचाव करने में सहायक हो। लेकिन फेफड़ों के कैंसर को कम करने हेतु कुछ कदम उठाये जा सकते है। निम्न तरीको द्वारा फेफड़ों के कैंसर का खतरा कम होने में मदद मिलेगी:
1. धूम्रपान न करना: फेफड़ों के कैंसर को रोकने का सबसे सही तरीका है कि धूम्रपान न किया जाये। जिन लोगों ने कभी भी धूम्रपान नहीं किया उनको फेफड़ों के कैंसर का सबसे कम जोखिम होता है। धूम्रपान के हानिकारक प्रभावों के बारे में अपने बच्चों से बात करें ताकि वे अपने साथियों के दबाव में आकर धूम्रपान शुरू न करें।
2. धूम्रपान: जितने भी लम्बे समय से आप धूम्रपान कर रहे हो धूम्रपान छोड़ना आवश्यक है। यदि 50 वर्ष की उम्र से पहले आप धूम्रपान छोड़ देते है तो अगले 10-15 साल में फेफड़ों के कैंसर का खतरा आधा हो सकता है। आपके चिकित्सक आपको धूम्रपान छोड़ने के तरीकों से अवगत करा सकते है।
3. निपिक्र धूम्रपान: यदि आप ऐसी जगह रहते या काम करते है जहां कोई व्यक्ति धूम्रपान करता है तो उससे धूम्रपान छोड़ने के लिये आग्रह करें। यदि नही तो उन्हें धूम्रपान बाहर जा कर करने के लिये अनुरोध करें। रेस्तरां, सार्वजनिक स्थानों इत्यादि में धूम्रपान क्षेत्रों से बचे।
4. रेडान के जोखिम से बचें: यदि आप एक ऐसे क्षेत्र में रह रहे है जहाँ रेडान एक समस्या है तो अपने घर में रेडोन के स्तर की जाँच करायें और जोखिम को कम करने के लिये कदम उठाएँ।
5. कार्यस्थल पर जोखिम कम करें: कार्यस्थल पर जहरीले रसायनों से अपने आप को बचाने के लिये अपने नियोक्ता द्वारा निर्देशित सावधानियों का पालन करें।
निम्नलिखित सामान्य तौर पर कैंसर के खतरे को कम करने में मदद करते है (सिर्फ फेफड़ों के कैंसर को नही):
• आहार में फल ओर सब्जियों की अधिकता।
• नियमित शारीरिक गतिविधियों में संलग्न रहना।
फेफड़ों के कैंसर से बचाव के लिए क्लिनिकल परीक्षणों द्वारा नए तरीकों का अध्ययन किया जा रहा है और ये उपाय हमें जल्द ही प्राप्त हो सकते हैं।
फेफड़ों का कैंसर आम तौर पर अपनी प्रारंभिक अवस्था में कोई भी विशिष्ट संकेत और लक्षण पैदा नही करता। मरीज सिर्फ स्वस्थ महसूस नही करते। फेफड़ों के कैंसर से पीड़ित ज्यादातर लोगों में लक्षण तब पैदा होते है जब रोग उन्न्त अवस्था में पहुँच चुका होता है।
इसके आम लक्षणों में शामिल हैं:
1. लगातार खाँसी जो सामान्य उपचार के बावजूद बढ़ती जाती है।
2. साँस की तकलीफ।
3. कफ (बलगम) में खून आना।
4. खाँसी के साथ खून आना।
5. साँस में घरघराहट।
6. सीने या कंधे में दर्द।
7. वजन में अस्पष्टीकृत गिरावट। 
8. अत्याधिक थकान।
9. भूख न लगना।
फेफड़ों के कैंसर के कम सामान्य लक्षण
ये लक्षण आमतौर पर फेफड़ों के कैंसर की अधिक उन्नत अवस्था से जुड़े होते हैं:
• निगलने में कठिनाई
• आवाज बैठना (गला बैठना)
• बढ़े हुये लिम्फ नोड्स की वजह से गर्दन में सूजन
• बार बार निमोनिया होना
• प्लेटलेट काउंट बढ़ना
• Pain दाँयी ओर की पसलियों में दर्द
• उंगलियों और नाखून के आकार में परिवर्तन
• कंधे में गम्भीर दर्द या दर्द जो हाथ से नीचे की तरफ आता है।
फेफड़ों के कैंसर के लक्षण आमतौर पर नही दिखाई देते। ये अधिकतर रोग की उन्नत अवस्था में पता चलते है, जब रोग का पूर्ण रूप से इलाज नहीं हो पाता। फेफड़ों का कैंसर के प्रारंभिक लक्षण जैसे लगातार खाँसी, सीने में दर्द और साँस की तकलीफ, फेफड़ों की अन्य बीमारियों जैसे कि संक्रमण या धूम्रपान के दीर्घकालिक प्रभावों से मिलते जुलते होते है और इन्हें गम्भीर रूप से नही लिया जाता। इस कारण रोग के निदान में अक्सर देरी होती जाती है।
फेफड़ों के कैंसर के लिये स्क्रीनिंग
फेफड़ों के कैंसर के लिये तीन परीक्षणों का स्क्रीनिंग के रूप में अध्ययन किया है:
1. छाती का एक्सरे: यह छाती के अंदर के अंगो तथा हड्डियों का एक्सरे है।
2. बलगम कोशिका विज्ञान: यह एक प्रक्रिया है जहाँ बलगम का एक नमूना कैंसर की कोशिकाओं की जाँच के लिये लिया जाता है।
3. सी.टी. स्कैन: यह शरीर के अंदर के अंगो की विस्तृत तस्वीरों की एक श्रृंखला बनाता है। इस प्रक्रिया में कम विकिरण उपयोग की जाती है।
इन तीनों परीक्षणों में छाती का एक्स-रे और बलगम कोशिका-विज्ञान को कैंसर का पता लगाने के लिये कम संवेदनशील पाया गया है। केवल सीटी स्कैन को फेफड़ों के कैंसर की स्क्रीनिंग के लिये, उच्च जोखिम वाले रोगियों में इस्तेमाल करने की सिफारिश की गई है।[39]
भारत में फेफड़ों के कैंसर की स्क्रीनिंग के लिये कोई दिशा-निर्देश नही है।
अमेरिकन कैंसर सोसायटी के दिशानिर्देशों के अनुसार अगर आप निम्नलिखित मानदंडो को पूरा करते है तो आपको फेफड़ों के कैंसर की स्क्रीनिंग करानी चाहिए। [40]:
1. यदि आपकी उम्र 55 से 74 वर्ष के बीच है।
2. यदि आपका 30 पैक प्रति वर्ष का धूम्रपान का इतिहास है।
3. आप या तो अभी भी धूम्रपान कर रहें है या पिछले 15 वर्षों में धूम्रपान छोड़ दिया है।
4. आपका स्वास्थ्य अच्छा है (आपको फेफड़ों के कैंसर के लक्षण या किसी गम्भीर चिकित्सा समस्या या फेफड़ों के कैंसर के इलाज का इतिहास नही होना चाहिए)।
लो डोज कम्पयूटिड टोमोग्राफी: यह तकनीक फेफड़ों में छोटी-छोटी अनियमितताओं को खाजने में छाती के एक्स रे से बेहतर है। एल.डी.सी.टी. एक सामान्य सी.टी.की तुलना में विकिरण की बहुत कम मात्रा का उपयोग करती है। स्क्रीनिंग 74 वर्ष की उम्र तक या लक्षण प्रकट होने तक हर साल की जानी चाहिए।
हालांकि यह स्क्रीनिंग फेफड़ों के कैंसर को छाती के एक्स-रे की तुलना में बेहतर पता लगा सकती है लेकिन यह याद रखना चाहिये की सब फेफड़ों के कैंसरों को एल.डी.सी.टी. द्वारा पता नहीं लगाया जा सकता तथा एल.डी.सी.टी. में मिली हर बीमारी कैंसर नहीं होती है।
फेफड़ों के कैंसर का निदान
यदि आपको फेफड़ों के कैंसर के एक या अधिक संभावित लक्षण है तो आपको अपने चिकित्सक के पास जाँच हेतु जाना चाहिये।
चिकित्सा का इतिहास और शारीरिक परीक्षण: यदि आपके चिकित्सक को संदेह है की आपको फेफड़े का कैंसर हो सकता है तो वह आपसे धूम्रपान, आपके व्यवसाय आदि जैसे जोखिम कारकों के बारे में पूछ सकता है।
वह आपकी अन्य स्वास्थ्य समस्याओं तथा फेफड़ों के कैंसर संबंधी जाँच करेगा और परीक्षण हेतु सलाह भी दे सकता है।
इमेजिंग परीक्षण:
• छाती का एक्स-रे: यह आमतौर पर पहला परीक्षण है जो चिकित्सक द्वारा कराया जाएगा। यदि एक्स रे में कुछ संदिग्ध दिखाई देता है तो अन्य परीक्षणों का आदेश दिया जायेगा।
• सी.टी.स्कैन: सी.टी. स्कैन एक्स रे की अपेक्षा फेफड़ों में उपस्थित ट्यूमर को दर्शाने में अधिक सक्षम होता है। सी.टी. स्कैन ट्यूमर के आकार आकृति और फेफड़ों की स्थिति के बारे में जानकारी प्रदान करता है और लिम्फ नोड्स या अन्य अंगो में कैंसर के प्रसार को खोजने में मदद करता है। [41]
सी.टी. निर्देशित सुई बॉयोप्सी: यदि सी.टी. स्कैन के दौरान में संदिग्ध ट्यूमर पाया जाता है तो चिकित्सक निदान हेतु कुछ ऊतक बॉयोप्सी द्वारा ले सकता है।
• एम.आर.आई स्कैन: एम.आर.आई का उपयोग ज्यादातर मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी में फेफड़ों के कैंसर के प्रसार को देखने के लिये किया जाता है। सी.टी. स्कैन के विपरित एम.आर.आई. में रेड़ियों तरंगी और मजबूत चुम्बकों का उपयोग किया जाता है और इसमें विकिरण का प्रयोग नही किया जाता।[42]
• पी.ई.टी. स्कैन (पौस्ट्रिौन स्कैन): पी.ई.टी. स्कैन यह देखने के लिये है कि कही कैंसर लिम्फ नाड्स या अन्य क्षेत्रों में तो नही फैला है जो यह निर्धारित करता है की शल्य चिकित्सा की आवश्यकता है या नही। पी.ई.टी. स्कैन उस अवस्था में भी उपयोगी होता है जब कैंसर फैल चुका है लेकिन यह पता नही चल पा रहा कि कहाँ फैला है।
प्रयोगशाला परीक्षण:
इमेजिंग द्वारा फेफड़ों में रसौली का पता लगाया जा सकता है, पर यह कैंसर है या नहीं इसकी पुष्टि कोशिकाओं की जाँच द्वारा ही संभव हैं। यह कोशिकाएँ बलगम, छाती में भरे पानी या रसौली की सुई/टुकड़े की जाँच द्वारा ली जा सकती हैं।
• बलगम की जाँच नमूना: बलगम के नमूने की माइक्रकोस्कोप द्वारा कैंसर कोशिकायँ देखने के लिये जाँच की जाती है। इसके लिये सबसे उपयुक्त नमूना सुबह का खाँसी के पश्चात् उत्पन्न बलगम है। यह जाँच 3 दिन तक की जाती है।[43, 44]
• सुई बॉयोप्सी: इस परीक्षण के लिये एक ऊतकों का छोटा सा नमूना पाने के लिये एक खोखली सुई को ट्यूमर में प्रविष्ट किया जाता है। यह जाँच एफ.एन.ए.बी. (सुई की जाँच) द्वारा एक पतली सुई के साथ सिरिंज लगाकर कुछ कोशिकाएँ और ऊतक लेकर की जा सकती है अथवा कोर बायोप्सी भी की जा सकती है, जिसमें ऊतकों का बेलनाकार टुकड़ा लिया जाता है।[45]
यदि संदिग्ध ट्यूमर फेफड़े के बाहरी हिस्से में है तो सुई छाती दीवार से होती हुई डाली जा सकती है (ट्रांसथोरेसिक सुई बॉयोप्सी)। यह प्रक्रिया रेडियोलोजिस्ट के मार्गदर्शन में स्थानीय संज्ञाहरण में की जाती है।
एफ.एन.ए.बी. छाती में मौजूद लिम्फ नोड्स में कैंसर के फैलाव को देखने के लिए श्वासनली (ट्रांसट्रेकियल या ट्रांसब्रोकियल) या एंडोस्कोपिक अल्ट्रासॉउन्ड द्वारा की जा सकती है।[46]
टुकड़े की जाँच की एक जटिलता फेफडों में से हवा का रिसाव (न्यूमोथोरेक्स) होता है। यह रिसाव यदि बड़ा हो तो फेफड़े के हिस्से का निपात तथा साँस लेने में तकलीफ हो सकती है। यह आमतौर पर स्वयं ही बिना इलाज़ किए ठीक हो जाती है।
• ब्रौन्कोस्कोपी: इस परीक्षण के लिये एक लचीले फाइबर आप्टिक ट्यूब को मुँह या नाक के रास्ते सांस की नली में और नीचे पारित कर दिया जाता है। डाॅक्टर ट्यूब के अंदर ट्यूमर तथा श्वास नलिकाओं में रुकावट देखता है। छोटे उपकाणों को भी ब्रोकोस्कोप द्वारा बायोप्सी लेने के लिये पारित किया जा सकता है। ब्रश द्वारा भी श्वास नलिका से ऊतकों की जाँच के लिये लिया जा सकता है।[47, 48]
• थोराकोसैन्टैसिस: यह प्रक्रिया तब की जाती है जब फेफड़ों के आसपास तरल पदार्थ एकत्रित हो जाता है जो सांस लेने में कठिनाई पैदा करता है। एक खोखली सुई पसलियों में डाली जाती है जो तरल पदार्थ को निकालने में मदद करती है। इस पदार्थ को ट्यूमर कोशिकायें की जाँच के लिये भेजा जाता है।[49]
यदि सांस लेने में तकलीफ है, तो यह प्रक्रिया तरल पदार्थ को हटाने में मदद करती है जिससे मरीज को सांस लेने में सुविधा होती है।
फेफड़ों के कैंसर की अवस्थायें
फेफड़ों के कैंसर की अवस्था पता लगाने के लिए दो तरह की अवस्था प्रणाली का उपयोग किया जाता हैं। संख्या प्रणाली व टी.एन.एम. अवस्था प्रणाली।[50, 51]
I. फेफड़ों के कैंसर की अवस्था में संख्या प्रणाली:
चरण 1
इस अवस्था में ट्यूमर का माप 5 से.मी. से कम होता है और यह केवल फेफड़ों तक सीमित होता है। कैंसर लिम्फ नाड्स तक नही फैला होता है।
चरण 2
यदि निम्नलिखित अवस्थाओं में से किसी एक की भी उपस्थिति है तो यह फेफड़े के कैंसर की दूसरी अवस्था के रूप में वर्गीकृत होती है:
• ट्यूमर का आकार 5 से.मी. से अधिक होना।
• लिम्फ नोड्स तक फैला हुआ कैंसर।
• ट्यूमर 7 से.मी. से अधिक हो और लिम्फ नोड्स तक ना फैला हो।
• निम्नलिखित क्षेत्रों तक फैला कैंसर: छाती की दीवार, फेफड़ों के तहत मांसपेशियाँ, तंत्रिका श्वासपटल या हृदय को दबाने वाली परत (मीडियास्टाइनल फुस्फुस अथवा पार्श्विका पेरीकर्डियम)
• मुख्य श्वसनी जहाँ विभाजित होकर फेफड़ों में जाती है वहाँ कैंसर का होना।
• फेफड़े के एक भाग का पतन।
चरण 3
यदि निम्न में से किसी भी एक की उपस्थिति है तो इसे कैंसर को तीसरी अवस्था में वर्गीकृत किया गया है:
• पूरे फेफड़ों का खराब हो जाना।
• कैंसर छाती की दीवारों, फेफड़ों की माँसपेशियाँ, दिल के आसपास की त्वचा तक फैल गया हो।
• छाती की विपरित दिशा में लिम्फ नोड्स का फैलाव।
• सीने में दिल की प्रमुख संरचनाओं की भागीदारी रक्त वाहिका शामिल है।
चरण 4
यदि कैंसर जिगर, हड्डियों या मस्तिष्क के आसपास फैल गया है।
II. फेफड़ों के कैंसर की टी.एन.एम. अवस्था प्रणाली : [52]:
टी.एन.एम. का अर्थ है ट्यूमर, नोड् और मेटास्टेसिस। यह प्रणाली इस प्रकार हैं :
ट्यूमर (टी)
टी 1 – ट्यूमर फेफड़ों तक सीमित है और 3 से.मी. से कम माप का हैं।
टी 2 – ट्यूमर का माप 3 औ 7 से.मी. के बीच में हैं।
टी 3 – ट्यूमर 7 से.म. से बड़ा हैं।
टी 4 – ट्यूमर इनमें से किसी संरचना तक पहुँच गया है : मध्यस्थानिका, हृदय, प्रमुख रक्त वाहिका, श्वांस नली, भोजन नली, रीढ़ की हड्डी अथवा ध्वनि यंत्र का संचालन करने वाली नस।
लिम्फ नोड्स (एन)
फेफडों के कैंसर के लिए एन अवस्था
एन 0 – किसी भी लिम्फ नोडस में कैंसर नहीं हैं।
एन 1-कैंसर प्रभावित फेफड़े के निकटतम लिम्फ नोड्स में फैला हुआ हैं।
एन 2 – प्रभावित फेफड़े की तरफ मध्यस्थानिका के लिम्फ नोड्स में अथवा श्वांस नली की कैरिना के नीचे लिम्फ नोड्स तक फैल हुआ कैंसर।
एन 3 – कैंसर छाती के दूसरे तरफ के लिम्फ नोड्स में अथवा कॉलर बोन के ऊपर स्थित लिम्फ नोड्स में अथवा फेफड़ों के शीर्षस्थित लिम्फ नोड्स में फैला हुआ।
मेटास्टोसिस (एम)
फेफडों के कैंसर के लिए एम अवस्था
एम 0 – ऐसा कोई सकेत नहीं है कि कैंसर फैफड़े के दूसरे भाग या शरीर के अन्य अंगों में फैला हैं।
एम 1 – कैंसर फेफड़े के दूसरे भाग या शरीर के अन्य अंग सें तक फैला हुआ।
फेफड़े के कैंसर का उपचार
फेफड़े के कैंसर का उपचार निम्न जानकारी पर निर्भर करता है:
• फेफडों के कैंसर का प्रकार,
• कैंसर का माप,
• कैंसर स्थानीय है या मैटास्टैटिक
• रोगी की सामान्य दशा
उपचार रूपरेखा [53] :
सर्जरी, कीमोथेरेपी, रेडियोथेरेपी और लक्षित चिकित्सा में से कोई भी अकेले या संयोजन में उपरोक्त जानकारी के आधार पर।
शल्य चिकित्सा
शल्य चिकित्सा ज्यादातर नॉन स्माल सैल कैंसर के लिये या पला स्माल सैल कैंसर के ईलाज के लिये की जाती है। शल्य चिकित्सक सिथति के अनुसार फेफड़े का एक छोटा हिस्सा (वेज अच्छेदन) बड़ा हिस्सा (सखण्ड अच्छेदन) एक फलि या संपूर्ण फेफड़ा निकाल सकता है।
कीमोथेरेपी
कीमोथेरेपी दवाओं के संयोजन में आमतौर पर बीच में ब्रेक के साथ हफ्तों या महीनों की अवधि में दिये जाते है। कीमोथेरेपी शल्य चिकित्सा से पहले (कैंसर को छोटा करने के लिये) या बाद में (बची हुई कैंसर कोशिकाओं को मारने के लिये) भी दी जाती है। कुछ मामलों में यह चिकित्सा दर्द और उन्नत कैंसर के अन्य लक्षणों को राहत देने के रूप में इस्तेमाल की जाती है।
कीमोथेरेपी के फेफड़ों के कैंसर के उपचार में इस्तेमाल दवाओं में से कुछ है:
• पैक्लिटैक्सल
• कार्बोप्लेटिन
• सिसप्लेटिन
• डाक्सीटेक्सल
• इटोपोसाइड
• जैमसिटाबीन
• पेमेट्रेक्सड
रेडियो थेरेपी
विकिरण चिकित्सा: शरीर के बाहर से विकिरण (बाहरी बीम विकिरण) या कैंसर क्षेत्र के पास (ब्रेकीथेरेपी) द्वारा फेफड़े के कैंसर पर निर्देशित की जा सकती है।
विकिरण चिकित्सा शल्यक्रिया के बाद बचे हुए कैंसर कोशिकाओं के खत्म करने के लिए अथवा अग्रिम अवस्था में प्रशामक चिकित्सा के रूप में दर्द व अन्य लक्षणों को कम करने के लिए प्रयाग की जा सकती हैं।
लक्षित ड्रग थेरेपी [55] (for non small cell lung cancer)
लक्षित चिकित्सा (एन.एस.सी.एल.सी. के लिये) लक्षित चिकित्सा में दवाएँ कैंसर कोशिकाओं के आणविक लक्ष्यों पर असर करती है। ये दवाएँ केवल कैंसर कोशिकाओं को मारती हैं और कैंसर के फैलाव तथा विकास को रोकती हैं।
कीमोथेरेपी: इन लक्षित चिकित्सा दवाओं से भिन्न हैं क्योंकि कैंसर के साथ शरीर की अन्य कोशिकाओं को भी प्रभावित करती है। लक्षित चिकित्सा के दुष्प्रभाव बहुत ही कम है, क्योंकि ये दवाएँ शरीर की सामान्य कोशिकाओं पर प्रभाव नही करती है।
फेफड़ों के कैंसर के उपचार के लिए कुछ लक्षित दवाएँ हैं:
1. ऐपीर्डमल ग्रोथ फैक्टर (ई.जी.एफ.आर.)-अवरोधक
• अर्लोटीनिब
• जेफटीनिब
2. ई.जी.एफ.आर. के खिलाफ मोनोक्लोनल ऐंटीबॉडी
• सेटुक्सीमॅब
3. वी.ई.जी.एफ. अवरोधक दवाएँ
• बिवासिजुमॅब
4. ई.एम.एल. 4-ए.एल. के. अवरोधक दवाएँ
• क्रिजोटीनिब
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